एक देश एक चुनाव (फोटो- नवभारत डिजाइन)
नई दिल्ली : केंद्रीय कैबिनेट ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ONOE) बिल को मंजूरी दे दी है, जिससे देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने का रास्ता साफ हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से इस विचार के समर्थक रहे हैं। इस योजना के जरिए चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाने और संसाधनों की बचत करने का उद्देश्य है, लेकिन इसके साथ ही कई चुनौतियां भी हैं। बता दें कि यह बिल फिलहाल जेपीसी के पास है।
ऐसे में आज के एक्सप्लेनर में हम बात करेंगे कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने पर कितना खर्च आएगा। इसके साथ ही हम यह भी जानेंगे कि इस खर्च का बोझ कौन उठाएगा। फिलहाल इस बिल को लेकर क्या सीन है। इन सारे चीजों के बारे में विस्तार से जानने के लिए बढ़ते जाइए इस एक्सप्लेनर को अंत तक।
चुनाव आयोग के अनुसार, अगर 2029 तक एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो इसका अनुमानित खर्च करीब 7,951 करोड़ रुपये आएगा। इसके लिए कई तैयारियां करनी होंगी, जैसे वोटर लिस्ट को अपडेट करना, वोटिंग मशीनों की खरीदारी, और सुरक्षा के इंतजाम। हालांकि, अलग-अलग चुनाव होने पर इन सभी तैयारियों को बार-बार दोहराना पड़ता है, जिससे ज्यादा खर्च होता है।
भारत में लोकसभा चुनाव का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। 1951 में पहले लोकसभा में हुए भारत के पहले चुनाव को 68 चरणों में कराया गया था, जिसमें कुल खर्च 10.5 करोड़ रुपये था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह खर्च बढ़कर 50,000 करोड़ रुपये करीब 7 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसके पीछे की वजह है मतदाताओं की बढ़ती संख्या, चुनाव प्रचार के तरीके। मौजूदा समय में सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार के लिए काफी ज्यदा खर्च आता है। चुनाव प्रचार करने के लिए अलग-अलग माध्यमों में अलग-अलग खर्च आते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव का खर्च 3,870 करोड़ रुपये था, और अब यह 46 रुपये प्रति मतदाता हो गया है।
चुनाव आयोग को विभिन्न तरह के खर्चों का सामना करना पड़ता है। इनमें अधिकारियों और सुरक्षा बलों की तैनाती, मतदान केंद्रों का निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) की खरीदारी, और अन्य जरूरी सामानों की व्यवस्था शामिल है। 2019 के चुनावों के बाद EVM खरीद और रखरखाव पर भारी खर्च हुआ। इसके अलावा, प्रशासनिक खर्च भी एक बड़ा भाग है।
लोकसभा चुनाव का पूरा खर्च केंद्र सरकार वहन करती है, जबकि राज्य विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकार उठाती है। अगर दोनों चुनाव एक साथ होते हैं, तो खर्च को केंद्र और राज्य के बीच बंट जाएगा।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ योजना के तहत करीब 13.6 लाख पोलिंग बूथ, 26.5 लाख बैलेट यूनिट्स और 17.8 लाख कंट्रोल यूनिट्स की जरूरत होगी। इसके साथ ही नए वोटिंग मशीनों के उत्पादन में सेमीकंडक्टर की कमी आ सकती है, जिससे पूरी प्रक्रिया में देरी हो सकती है। चुनाव सुरक्षा के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की जरूरत होगी और करीब 7 लाख सुरक्षाकर्मी तैनात किए जा सकते हैं।
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इस योजना से समय और संसाधनों की बचत हो सकती है, लेकिन इसके लिए चुनाव आयोग को नई मशीनों, पोलिंग बूथ, और कर्मचारियों की व्यवस्था करनी होगी। इसके अलावा, चुनावों की सुरक्षा और प्रशासनिक खर्च भी बढ़ सकते हैं।