दादाभाई नौरोजी (फोटो-सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: 2025 में भारतीय मूल के कई नेता हैं जो विदेशों में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर काम कर रहे हैं। आज से 150 साल पहले किसी भारतीय का किसी दूसरे देश में इस तरह के पद पर रहने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। लेकिन भारत की आजादी के महानायक महात्मा गांधी से भी पहले एक नेता ऐसा भी था, जिसने पहले अपने दम पर ब्रिटिश संसद का चुनाव जीता और फिर अपनी एक थ्योरी से महारानी विक्टोरिया के ताज को भी हिलाकर रख दिया। हम बात कर रहे हैं दादा भाई नौरोजी की।
दादा भाई नौरोजी कहने को वे एक शिक्षक, समाज सुधारक और अर्थशास्त्री थे, लेकिन असल में वे भारत की आजादी के पहले मजबूत स्तंभ थे। 1825 में मुंबई में जन्मे इस पारसी विद्वान ने भारत की गुलामी की जड़ों को आर्थिक तर्कों से हिलाया, जब बाकी देशवासी सिर्फ चुपचाप सह रहे थे।
नौरोजी ने लंदन जाकर ब्रिटिश संसद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, वे पहले भारतीय थे जो इस मुकाम तक पहुंचे। लेकिन असली झटका तब लगा जब उन्होंने ‘ड्रेन थ्योरी’ दुनिया के सामने रखी। उन्होंने ठोस आंकड़ों से साबित किया कि ब्रिटेन हर साल भारत से अरबों की संपत्ति चुपचाप खींच रहा है। उन्होंने इसे ‘भारत की चुपचाप होती लूट’ कहा। यह एक ऐसा रहस्योद्घाटन था जिसने सत्ता के गलियारों में खलबली मचा दी।
1885 में जब कांग्रेस की स्थापना हुई, तो कुछ लोगों को यह एक ‘भद्र लोक’ की बैठक लगी, लेकिन नौरोजी ने इसे जनचेतना का माध्यम बना दिया। 1906 में कोलकाता अधिवेशन में उन्होंने पहली बार खुले मंच से ‘स्वराज्य’ की मांग की। तब यह शब्द भी अनसुना था लेकिन उन्होंने इसे राष्ट्रीय आंदोलन की धड़कन बना दिया।
नौरोजी सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया, बाल विवाह के खिलाफ आवाज़ उठाई और ‘द एशियाटिक ट्राइब्यून’ जैसे अखबार शुरू कर लोगों में चेतना फैलाई। एल्फिंस्टन कॉलेज में पढ़ाते समय उन्होंने हजारों युवाओं में स्वतंत्रता की चिंगारी जलाई।
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30 जून 1917 को दादा भाई नौरोजी ने अंतिम सांस ली, लेकिन जिस सोच के साथ उन्होंने साम्राज्य की नींव पर चोट की थी, वह आज भी भारतीय लोकतंत्र की प्रेरणा है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और अन्य शीर्ष नेताओं ने आज उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। संसद परिसर और शैक्षणिक संस्थानों में उनके योगदान को याद करते हुए विशेष संगोष्ठियाँ आयोजित की गईं।