वक्फ के बहस पर बोले- CJI
नई दिल्ली: बुधवार को वक्फ कानून से जुड़ी एक अहम सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी रही। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में बनी पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बहस की शुरुआत की, जिसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी बात रखी।
सिब्बल ने संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति वक्फ बनाना चाहता है, तो उससे यह प्रमाण मांगा जाता है कि वह पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिम परिवार में जन्मा है, तो उसे यह साबित करने की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए? उनका तर्क था कि ऐसे मामलों में व्यक्तिगत कानून (पर्सनल लॉ) लागू होना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि वक्फ बनाने वाला व्यक्ति आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करता है, तो वक्फ वैध माना जाना चाहिए। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुच्छेद 26 एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है और यह सभी समुदायों के लिए समान रूप से लागू होता है।
अधिवक्ता सिंघवी ने अदालत में कहा कि देशभर में लगभग आठ लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से चार लाख से अधिक ‘वक्फ बाई यूजर’ के रूप में दर्ज हैं। उन्होंने चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए हालिया संशोधन के चलते इन संपत्तियों पर संकट मंडरा रहा है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि जब वे दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत थे, तब उन्हें भी एक ज़मीन के बारे में बताया गया था कि वह वक्फ संपत्ति है। उन्होंने स्पष्ट किया, “हमें गलत मत समझिए, हम यह नहीं कह रहे कि सभी ‘वक्फ बाई यूजर’ संपत्तियां अवैध हैं।”
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बहस के दौरान, सिंघवी ने यह टिप्पणी की कि उन्हें जानकारी मिली है कि संसद भवन की जमीन भी वक्फ संपत्ति हो सकती है। उन्होंने अदालत से सवाल किया कि क्या अयोध्या मामले में दिए गए फैसले इस मामले पर भी लागू नहीं होते हैं। सिंघवी ने संशोधित वक्फ अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की और कहा कि जब तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक यह संशोधन लागू नहीं किया जाना चाहिए।
इस बीच, वकील हुजेफा अहमदी ने भी अधिनियम की धारा 3(आर) के तीन प्रमुख पहलुओं पर विचार करने की बात की। खासकर इस बिंदु पर कि अगर ‘इस्लाम का पालन करना’ आवश्यक धार्मिक कर्तव्य माना जाता है, तो इसका असर नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर पड़ सकता है। अहमदी ने यह भी कहा कि इस मुद्दे से संबंधित कुछ अस्पष्टताएँ उत्पन्न हो रही हैं।