कवि अशोक चक्रधर (सोर्स- सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: हिंदी साहित्याकाश में अनगिनत सितारे अपनी अप्रतिम आभा के साथ दैदीप्यमान हैं। हर किसी की अपनी एक अलग चमक है। इनमें उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और कवि शामिल हैं। आज यानी शनिवार 8 फरवरी को उनमें से ही एक सितारे का जन्मदिन है। ये वो कवि है जिसने बच्चों को गुदगुदाया, लोगो को हंसाया और सरकारों को जमकर रुलाया।
इस कवि का नाम इतना ओजस्वी है कि सुनकर आप एक पल के लिए यही सोचेंगे कि यह वीर रस का कवि होगा! लेकिन जब आप उनकी रचनाएं पढ़ेंगे तो पेट हंस-हंस कर लोट पोट हो जाएंगे। जब उनकी कविताओं को समझेंगे तो अकस्मात ‘वाह’ कह उट्ठेंगे। उनकी कविताएं पढ़कर ऐसा लगेगा कि मानों यह आपके ही आस-पास की समस्या को हंसते-हंसाते शासन तक पहुंचा रहे हैं। निर्लज्ज राजनेताओं को आईना दिखा रहे है, और निरंकुश सरकारों पर शब्दों का अंकुश लगा रहे हैं।
जी हां आज हास्य और व्यंग्य के उत्कृष्टतम कवि अशोक ‘चक्रधर’ का जन्मदिन है। अशोक ‘चक्रधर’ 74 साल पहले आज ही के दिन यानी 8 फरवरी 1951 को मध्य प्रदेश के खुर्जा में जन्मे थे। साहित्यिक समझ उन्हें विरासत में मिली थी। उनके पिता राधेश्याम प्रगल्भ भी एक प्रतिष्ठित कवि थे। जिनके समकालीन कवियों में गोपालदास नीरज, हरिवंशराय बच्चन, निर्भय हाथरसी, शैल चतुर्वेदी, संतोष आनंद ओर रमानाथ अवस्थी जैसे दिग्गज कवि शामिल हैं।
यही वजह है कि अशोक ‘चक्रधर’ की लेखनी की धार तेज होती गई। इतना ही नहीं बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि अशोक चक्रधर कालजयी कवि काका हाथरसी के दामाद भी है। इसकी छाप अशोक चक्रधर की लेखनी में दिखाई देती है। वैसे तो अगर आप साहित्यप्रेमी हैं तो उनकी कविताएं पढ़ी ही होंगी। लेकिन जन्मदिन के मौके पर हम उनकी कविता ‘जंगल में चुनाव आने वाला है’ आपके लिए लेकर आए हैं।
एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी – कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।
पानी से निकलकर
मगरमच्छ किनारे पर आया,
इशारे से
बंदर को बुलाया।
बंदर गुर्राया-
खों खों, क्यों,
तुम्हारी नजर में तो
मेरा कलेजा है?
मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
खास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है।
बंदर ने सोचा
ये क्या घोटाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है.
लेकिन प्रकट में बोला-
वाह!
अचार, वो भी सिंघाड़े का,
यानि तालाब के कबाड़े का!
बड़ी ही दयावान
तुम्हारी मादा है,
लगता है शेर के खिलाफ़
चुनाव लड़ने का इरादा है।
कैसे जाना, कैसे जाना?
ऐसे जाना, ऐसे जाना
कि आजकल
भ्रष्टाचार की नदी में
नहाने के बाद
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
वही तो मगरमच्छ है।
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अशोक ‘चक्रधर’ दिल्ली की जामिया, मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हिंदी के विभागाध्यक्ष के तौर पर लंबे समय तक सेवाएं दे चुके हैं। यहां उन्होंने 29 साल काम करने के बाद हिंदी की सेवा के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। साहित्य में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से भी नवाजा जुका है।