बसपा प्रमुख मायावती का जन्मदिन (सोर्स: सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: साल था 2007 और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का माहौल, तब सियासी गलियारों में एक नारा लगाया गया- ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा… हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है।’ ये उत्तर प्रदेश की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग थी, जिसमें दावत दलितों की ओर से दी गई और मेहमान बने ब्राह्मण-मुस्लिम।
इस नारे के बल पर यूपी की सत्ता में काबिज होकर चौथी बार मुख्यमंत्री बनी मायावती। आज यानी 15 जनवरी को बसपा प्रमुख मायावती का जन्मदिन है। आइए जानते है मायावती के राजनीतिक जीवन के कुछ किस्से…
2007 में दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम फॉर्मूले के बल पर 403 में से 206 विधानसभा सीटें जीतकर बहुजन समाज पार्टी ने यूपी की राजनीति अपना सिक्का जमाया। यूपी में साल 1960 के बाद मायावती पहली CM, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
अब मायावती की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर थी। फिर 2009 में बसपा को 20 सीटें मिलीं, लेकिन वोट शेयर लगातार घटता जा रहा था। 2012 में उनके हाथ से उत्तर प्रदेश भी निकल गया और 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का ‘हाथी’ थम गया।
2019 के लाेकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के दम पर मायावती भले 10 सीटें जीत गईं, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा अकेले ही लड़ी। इसमें बसपा को करारी शिकस्त मिली और सिर्फ 1 सीट ही जीत पाईं। 2024 लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी पूरी तरह बिखर गई। इस बसपा को एक सीट भी नहीं मिली।
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि बसपा का भविष्य क्या है? मायावती और बसपा के राजनीतिक सफर को देखें तो यह दलित और मुस्लिम वोट बैंक के इर्द-गिर्द घुमती हैं। दलितों के हितों की आवाज उठाकर राजनीति में कदम रखने वाली बसपा ने सत्ता के लिए बाद में मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ा। लेकिन कुछ समय बाद परिस्तिथियां बदली और ब्राह्मणों को भी साधने की कोशिश की।
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लेकिन समय का पहिया घुमा और दलितों व मुस्लिमों का मायावती और बसपा से मोह भंग होता चला गया। यह वोट बैंक अब सपा की तरफ खिसक चुका है। वहीं दलितों की आवाज उठाकर सियासत में आए चंद्रशेखर आजाद रावण ने अपनी पार्टी तैयार की ‘आजाद समाज पार्टी’। अब दलित वोट बैंक में चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने भी सेंध लगा दी है।
मायावती की बहुजन समाज पार्टी के भविष्य पर अब सवालिया निशान है। बसपा को फिर से खड़ा करने के लिए मायावती को पार्टी में बड़े बदलाव करने होंगे। केवल दलित और मुस्लिम वोट के बजाय अन्य वर्गों को भी अपने साथ जोड़ना होगा। देश में बदलती राजनीति को समझते हुए कई कड़े कदम भी उठाने होंगे।