प्रफुल्ल पटेल का जन्म दिन आज (सोर्स: एएनआई)
नवभारत डिजिटल डेस्क: आजकल तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियों को पाॅलिटिकल मैनेजरों की जरूरत होती है। पाॅलिटिकल मैनेजर मतलब, पार्टी का वह शख्स जो पार्टी के अंदर और बाहर दोनों तरह के क्राइसिस को संभाल सके। इस तरह की राजनीतिक खूबियों वाले लोगों में अक्सर दिवंगत प्रमोद महाजन, अहमद पटेल, अमर सिंह, प्रेम गुप्ता, सतीश चंद्र मिश्रा समेत कई नेताओं का नाम लिया जाता है। लेकिन आज हम बात करेंगे प्रफुल्ल पटेल की, जो महाराष्ट्र की राजनीति और पवार परिवार का राइट हैंड माने जाते हैं।
प्रफुल्ल पटेल आज अपना जन्मदिन मना रहे हैं। वे 68 वर्ष के हो गए हैं। प्रफुल्ल पटेल को शरद पवार का दाहिना हाथ माना जाता रहा है। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले पांच साल में हुई उथल-पुथल के बाद वे अजित पवार के राइट हैंड बन गए है।
प्रफुल्ल पटेल का शरद पवार के करीब आने का एक दिलचस्प किस्सा है। 50, 60 और 70 के दशक में पूर्व उप प्रधानमंत्री यशवंत राव चव्हाण महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े नेता माने जाते थे। खासकर तब जब 1960 में बॉम्बे राज्य का बंटवारा महाराष्ट्र और गुजरात में हुआ और मोरारजी देसाई जैसे बड़े नाम गुजरात के नेता के तौर पर जाने जाने लगे।
उस दौर में विदर्भ क्षेत्र से एक नेता हुआ करते थे। उनका नाम था मनोहर भाई पटेल। मनोहर भाई गोंदिया विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक थे। वे यशवंत राव चव्हाण के कट्टर समर्थक थे। उन दिनों बारामती से एक कॉमर्स ग्रेजुएट भी चव्हाण के मार्गदर्शन में राजनीति के गुर सीख रहा था। उनका नाम था शरद पवार।
शरद पवार और मनोहरभाई पटेल दोनों की बैठकी यशवंतराव चव्हाण के घर लगती थी। कभी-कभी मनोहरभाई अपने बेटे प्रफुल्ल के साथ भी आते थे। लेकिन इसी बीच 1970 में मनोहरभाई पटेल का निधन हो गई। उस समय प्रफुल्ल पटेल की उम्र सिर्फ़ 13 साल थी। यह वो दौर था जब शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में मज़बूती से अपनी जगह बनाते नज़र आ रहे थे।
पिता के निधन के बाद प्रफुल्ल पटेल ने अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर शरद शरद पवार के साथ जुड़ गए। शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल की करीबियां बढ़ती चली गई। 1985 में प्रफुल्ल पटेल गोंदिया म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के चेयरमैन बन गये।
प्रफुल्ल पटेल और शरद पवार (सोर्स: एएनआई)
फिर आया 1991 का साल। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने विदर्भ की भंडारा लोकसभा सीट से प्रफुल्ल पटेल को कांग्रेस का टिकट दिलवा दिया और प्रफुल्ल जीत गए। लेकिन उनके राजनीतिक गुरु शरद पवार प्रधानमंत्री पद की दौड़ में पीवी नरसिंह राव से मात खा गए। हालांकि रक्षा महकमे की जिम्मेदारी के साथ पवार दिल्ली आ गए।
यह वह समय था जब शरद पवार को नरसिम्हा राव के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा था। उनके इर्द-गिर्द और खास तौर पर दिल्ली और मुंबई में उनके आवास पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। इन सभी जमावड़ों और व्यवस्थाओं पर एक व्यक्ति की बहुत पैनी नज़र रहती थी। वह व्यक्ति थे प्रफुल्ल पटेल।
उस दौर में शरद पवार की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के बारे में ख़ुद प्रफुल्ल पटेल ने कुछ महीनों पहले कहा था कि “शरद पवार कांग्रेस की दरबार संस्कृति के कारण कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नहीं बन सके।”
90 के दशक की शरद पवार के सान्निध्य में प्रफुल्ल पटेल का दिल्ली में प्रभाव बढ़ा। इस प्रभाव के बीच उन्होंने 1996 और 1998 के आम चुनाव भी जीते। खैर, इन दोनों चुनावों में उनकी कांग्रेस पार्टी लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।
साल 1998-99 की बात है। शरद पवार बारामती से कांग्रेस के सांसद थे और लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। लेकिन साल बीतते-बीतते वाजपेयी सरकार गिर गई। फिर कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने की कोशिश में जुट गई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति केआर नारायणन के सामने सरकार बनाने का दावा पेश किया और कहा, ‘मेरे पास 272 सांसदों का समर्थन है।’ लेकिन जब राष्ट्रपति ने समर्थन पत्र मांगा तो कांग्रेस ने हाथ खड़े कर दिए। नतीजतन, मध्यावधि चुनाव हुए।
यह 1998-99 का साल था। शरद पवार बारामती से कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। इसी साल भारत की राजनीति का वो मशहूर किस्सा इतिहास में दर्ज हो गया। साल बीतते-बीतते वाजपेयी सरकार 1 वाेट से गिर गई।
इसके बाद कांग्रेस ने सरकार बनाने की कवायद शुरू की। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति केआर नारायणन के सामने सरकार बनाने का दावा पेश करते हुए कहा कि “मेरे पास 272 सांसदों का समर्थन है।” लेकिन जब राष्ट्रपति ने समर्थन पत्र मांगा तो कांग्रेस नेताओं ने हाथ खड़े कर दिए। नतीजतन देश में मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई।
इस पूरी कवायद में एक बात स्पष्ट हो गई कि विपक्ष के नेता शरद पवार अब कांग्रेस में रहकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच सकते। नतीजतन 3 सप्ताह के भीतर शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कांग्रेस पार्टी में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया।
प्रफुल्ल पटेल और अजित पवार (सोर्स: एएनआई)
इसके बाद शरद पवार ने अपनी नई पार्टी बनाई, जिसका नाम रखा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, संक्षेप में NCP। उस दौर में सभी पार्टियों में राजनीतिक मैनेजर भरे पड़े थे। ऐसे में शरद पवार को भी एक ऐसे राजनीतिक मैनेजर की जरूरत थी जो महाराष्ट्र में उनके समीकरणों को संभालने के साथ-साथ दिल्ली की राजनीति के चाल, चरित्र और चेहरे को भी समझता हो। इस काम के लिए पवार के भरोसेमंद लोगों की टोली में प्रफुल्ल पटेल से बेहतर कोई नाम नहीं था।
प्रफुल्ल पटेल को न केवल दिल्ली की राजनीति की समझ थी, बल्कि वे विदर्भ क्षेत्र में पार्टी के एक मजबूत चेहरे की जरूरत को भी पूरा कर रहे थे, जहां एनसीपी को कमजोर माना जाता है। लेकिन एनसीपी में शामिल होने के बाद लोकसभा उनके लिए दूर का सपना बन गया था। फिर भी साल 2000 में शरद पवार उन्हें राज्यसभा ले गए, जहां से वे लगातार चौथी बार राज्यसभा में हैं।
अब साल आया 2023 का। शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने उनसे ही बगावत कर दी। शरद पवार को अपना राजनीति गुरु मानने वाले प्रफुल्ल पटेल ने इस बाद शरद पवार का साथ देने की बजाय अजित पवार का साथ दिया। अजित पवार से प्रफुल्ल को इसका तोहफा दिया और पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया दिया। मतलब शरद पवार के पॉलिटिकल मैनजर अब अजित पवार के पॉलिटिकल मैनेजर बन गए।