
धीरेंद्र शास्त्री व ममता बनर्जी (डिजाइन फोटो)
West Bengal Politics: बिहार में चुनाव खत्म हो चुके हैं। एनडीए को बंपर जीत मिली। 89 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, तो जदयू ने भी 85 सीटों पर कब्जा जमाया। नई सरकार का गठन हो चुका है। नीतीश कुमार 10वीं बार सूबे के मुखिया बन चुके हैं। बिहार में एनडीए की इस बड़ी जीत के पीछे कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की मेहनत के साथ एक और कारण था ‘बाबा’।
भारतीय राजनीति में धार्मिक नेताओं की भूमिका हमेशा चर्चा का विषय रही है। एक तरफ वे भक्तों को आकर्षित करते हैं, तो दूसरी तरफ वे राजनीतिक पार्टियों के लिए वोट बैंक का ज़रिया बन जाते हैं। बागेश्वर धाम के मुख्य पुजारी पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इस क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति हैं।
साल 2020 से 2022 के बीच कोरोना महामारी के दौरान, उन्होंने अपनी कथाओं से राष्ट्रीय पहचान बनाई। अब वे हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के लिए इस तरह काम कर रहे हैं जैसा जैसा भाजपा और संघ भी नहीं करता। इसीलिए उन पर आरोप लगते हैं कि वो भारतीय जनता पार्टी की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
एक तरफ बीते कल (6 दिसंबर) को मुर्शिदाबाद में पूर्व टीएमसी नेता और विधायक हुमायूं कबीर ने ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रख दी। दूसरी तरफ आज यानी 7 दिसंबर को धीरेन्द्र शास्त्री पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता पहुंच गए। हालांकि, उनकी कथा पहले से ही प्रस्तावित थी लेकिन अब दल-बल के साथ पहुंचने पर सियासी हलकों में हलचल मच गई है।
मंच पर उनके साथ पद्म भूषण प्राप्त साध्वी ऋतंभरा, अयोध्या स्थिति हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास भी मौजूद रहे। इसके अलावा लाखों साधु-संतों के साथ बीजेपी के आला नेता शुभेंदु अधिकारी, सुकांत मजूमदार, दिलीप घोष के साथ-साथ राज्य के राज्यपाल सीवी आनंद बोस की मौजूदगी ने इसे सियासी रंग दे दिया। यहां भी उन्होंने भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने का आह्वान कर दिया है।
ब्रिगेड के मैदान में शुरू हुआ — 5 लाख लोगों की आवाज़ में गीता पाठ!
वहाँ मौजूद थे #BageshwarDhamSarkar धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री। pic.twitter.com/NyuJ2h4lOO — Soma Das 🇮🇳 (@Soma_dhar25) December 7, 2025
राजनैतिक चौपालों पर हो रही चर्चाओं में सवाल उठ रहा है कि क्या यह बिहार 2025 विधानसभा चुनावों से पहले की उनकी सक्रियता का दोहराव है? भारतीय जनता पार्टी क्या ‘बिहार मॉडल’ की तर्ज पर बंगाल का किला फतह करने की तैयारी में है? अगर ऐसा हो तो यह ममता बनर्जी के लिए चिंता का विषय होने वाला है।
धीरेंद्र शास्त्री को ‘बागेश्वर बाबा’ या ‘बाबा बागेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है। वह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम के रहने वाले हैं। हनुमान चालीसा, राम कथा और हिंदू एकता पर आधारित उनकी कहानियां लाखों लोगों को आकर्षित करती हैं। हालांकि, 2023 में उनका राजनीतिक रुख और गहरा होने लगा।
फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा बनवाए जा रहे कैंसर हॉस्पिटल की नींव रखने छतरपुर पहुंचे। वहां उन्होंने धीरेन्द्र शास्री को ‘छोटा भाई’ बताया और ‘हिंदू एकता की कोशिशों’ के लिए उनकी तारीफ की। जिसे विपक्ष ने सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला बताया। दूसरी तरफ धीरेन्द्र शास्त्री खुद कहते हैं कि वह किसी पार्टी को नहीं, बल्कि ‘सभी हिंदूवादी दलों’ को सपोर्ट करते हैं।
पीएम मोदी व धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (सोर्स- सोशल मीडिया)
धर्म और सत्ता के बीच का टकराव हमेशा से पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक सेंसिटिव टॉपिक रहा है। ममता बनर्जी, जिन्हें प्यार से ‘दीदी’ कहा जाता है, ने अपनी “मां-माटी-मानुष” इमेज के जरिए हिंदू-मुस्लिम एकता की वकालत करती हैं। वहीं, धीरेंद्र शास्त्री हिंदू एकता और सनातन धर्म के प्रचारक हैं। राजनीतिक रूप से उन्हें भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे से जुड़ा हुआ माना जाता है।
उनकी सक्रियता ने बिहार 2025 के चुनावों से पहले हिंदू वोटों को मज़बूत किया। बंगाल में भी 70% हिंदू आबादी है, लेकिन टीएमसी की मजबूत पकड़ (2021 में 213 सीटें) को देखते हुए भाजपा का धार्मिक कार्ड खेलना लगभग तय है। शास्त्री की कहानियां न सिर्फ भक्तों को जोड़ती हैं, बल्कि ‘घुसपैठ’ और ‘धर्मांतरण’ जैसे मुद्दों को उठाकर राजनीतिक माहौल को भी गरमा देती हैं।
2025 के बिहार असेंबली इलेक्शन (अक्टूबर-नवंबर) से कुछ महीने पहले शास्त्री का एक्टिविज़्म पीक पर था। मार्च 2025 में, होली के दौरान, उन्होंने पटना और दूसरे ज़िलों में प्रोग्राम किए। RJD नेताओं ने उनके पटना विज़िट का विरोध किया, उन्हें डर था कि इससे कम्युनल टेंशन बढ़ेगा। जुलाई में पटना में दिए एक भाषण से विवाद खड़ा हो गया, जहां उन्होंने “भगवा-ए-हिंद” की कल्पना की और बिहार को ‘हिंदू राष्ट्र का पहला राज्य’ बताया।
इस ‘मॉडल’ का असर बिहार में साफ दिखाई दिया। एनडीए ने 243 में से 202 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गया। शास्त्री ने 13 नवंबर को वोटर्स को आशीर्वाद दिया और ‘राष्ट्रवादी जीत’ की कामना की। सियासी विश्लेषकों ने कहा कि उनके नैरेटिव्स ने हिंदू वोट को मजबूत किया, जिससे नीतीश-मोदी अलायंस को फायदा हुआ।
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बिहार में शास्त्री की तीन रणनीतियां दिखीं। पहली हिंदू एकता को बढ़ावा देना, दूसरी धर्मांतरण और ‘घुसपैठ’ के खिलाफ बोलना और तीसरा लोकल भाजपा नेताओं के साथ मंच साझा करना। जिसके चलते सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ा जिसका नतीजों में साफ असर दिखाई दिया। बिहार में एनडीए की जीत में हिंदू वोटों का हिस्सा 60% था।






