असम में कथित तौर पर नागरिकों को विदेशी बताकर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के बांग्लादेश भेजे जाने के आरोप
गुवाहाटी: असम में कथित तौर पर नागरिकों को विदेशी बताकर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के बांग्लादेश भेजे जाने के आरोपों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिका में कहा गया है कि सीमावर्ती जिलों में गरीब और हाशिए पर खड़े भारतीय नागरिकों को बिना जांच और सुनवाई के जबरन डिटेन कर सीमा पार भेजा जा रहा है। यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के दुरुपयोग का परिणाम बताई जा रही है जिसमें सरकार को 63 घोषित विदेशियों को देश से बाहर भेजने की अनुमति दी गई थी। अब इस आदेश के नाम पर व्यापक कार्रवाई का आरोप लगाया गया है।
याचिका में दावा किया गया है कि इस तरह की कार्रवाइयों से असम के धुबरी, दक्षिण सालमारा और गोलपाड़ा जैसे जिलों में रहने वाले वे लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं जो न तो अपनी नागरिकता साबित कर पा रहे हैं और न ही न्यायिक सुनवाई पा रहे हैं। यह पूरी प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का सीधा उल्लंघन मानी जा रही है, जिसमें हर व्यक्ति को समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का गलत इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट ने 4 फरवरी को अपने एक आदेश में 63 घोषित विदेशियों को देश से वापस भेजने को कहा था, लेकिन याचिकाकर्ताओं के अनुसार, इस आदेश का दायरा बढ़ाकर अब उन लोगों को भी बाहर भेजा जा रहा है जिनकी नागरिकता की पुष्टि तक नहीं हुई है। इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि लोगों को अपनी बात रखने का अवसर तक नहीं मिल रहा।
‘पुश बैक’ नीति पर सवाल
याचिका में यह मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट तत्काल हस्तक्षेप करे और स्पष्ट करे कि जब तक किसी व्यक्ति को विदेशी ट्राइब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित नहीं किया जाता, तब तक उसे देश से बाहर नहीं निकाला जा सकता। इसके साथ ही यह भी मांग की गई है कि राज्य सरकार की मौजूदा ‘पुश बैक’ नीति को असंवैधानिक करार दिया जाए और उस पर रोक लगाई जाए। बता दें इस तरह के आरोप असम की सरकार पर खूब लग रहे है जिसको लेकर अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है।