
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (फोटो सौजन्य-सोशल मीडिया )
CM Himanta Biswa Sarma Statement: मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अनियंत्रित प्रवासन और बदलती जनसांख्यिकी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। गुवाहाटी में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि असम की मूल आबादी अब अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है, जिससे राज्य की भौगोलिक अखंडता खतरे में पड़ सकती है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक आधिकारिक कार्यक्रम के बाद मीडिया से बातचीत में अत्यंत चौंकाने वाला दावा किया है। उन्होंने कहा कि यदि पड़ोसी देश बांग्लादेश से आने वाले लोगों की आबादी असम में 10 प्रतिशत और बढ़ जाती है, तो उनका राज्य स्वतः ही बांग्लादेश में शामिल हो सकता है। सरमा ने जोर देकर कहा कि वह पिछले पांच वर्षों से अनियंत्रित प्रवासन (Uncontrolled Migration) के खतरों के बारे में लगातार आवाज उठा रहे हैं। उनके अनुसार, राज्य की वर्तमान स्थिति ऐसी है कि जनसांख्यिकीय बदलाव सीधे तौर पर राज्य के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री का यह बयान बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के नेता हसनत अब्दुल्ला की टिप्पणी के जवाब में आया है। अब्दुल्ला ने हाल ही में विवादास्पद बयान दिया था कि यदि नई दिल्ली ढाका को अस्थिर करने का प्रयास करती है, तो बांग्लादेश को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग-थलग कर देना चाहिए और वहां के अलगाववादी तत्वों का समर्थन करना चाहिए। अब्दुल्ला ने यह भी दावा किया था कि पूर्वोत्तर क्षेत्र भौगोलिक रूप से असुरक्षित है क्योंकि यह मुख्य भूमि से केवल संकरे सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) के माध्यम से जुड़ा है।
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हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य के भीतर के आंकड़ों को साझा करते हुए बताया कि असम की लगभग 40 प्रतिशत आबादी वर्तमान में बांग्लादेशी मूल की है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तो राज्य के अन्य समुदायों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। सरमा के विश्लेषण के अनुसार, असम की मुस्लिम आबादी 2021 में लगभग 38 प्रतिशत थी और प्रवासन की वर्तमान गति के कारण यह 2027 तक 40 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रवासन के कारण असम के मूल निवासी अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं, जिससे ‘पहचान की राजनीति’ अब कोई विकल्प नहीं बल्कि एक मजबूरी बन गई है।






