कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार (फोटो सोर्स -सोशल मीडिया)
बेंगलुरु: कर्नाटक की राजनीति में आरक्षण को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा राज्य के बजट 2025-26 में सरकारी ठेकेदारों के लिए 4% आरक्षण की घोषणा के बाद सियासी घमासान मच गया है। यह आरक्षण शिक्षा या नौकरियों के लिए नहीं बल्कि सरकारी प्रोजेक्ट्स के टेंडर में दिया गया है, जहां 1 करोड़ रुपये तक के ठेके हासिल करने के लिए अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों को विशेष अवसर मिलेगा। लेकिन इस फैसले पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह आरक्षण सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए है या फिर अन्य वर्गों को भी इसमें शामिल किया गया है।
हालांकि, बजट में कैटेगरी 2B का जिक्र किया गया है, जिसमें विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय शामिल है। इससे विपक्ष को सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे तुष्टीकरण की राजनीति करार दिया।
राज्य के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा कि 4% आरक्षण सिर्फ मुस्लिमों के लिए नहीं, बल्कि सभी अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों के लिए है। उन्होंने कहा कि यह आरक्षण कर्नाटक ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट एक्ट (KTPP) के तहत लागू किया गया है और इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, कैटेगरी-1, कैटेगरी-2A और कैटेगरी-2B के तहत आने वाले सभी समुदायों को शामिल किया गया है।
बीजेपी ने कांग्रेस सरकार के इस फैसले को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया और कहा कि यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है। राज्य बीजेपी अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने कहा कि कांग्रेस सरकार राज्य को अशांति की ओर ले जा रही है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब अब तक किसी विधायक के लिए कोई फंड जारी नहीं हुआ, कोई टेंडर जारी नहीं हुआ, तो इस आरक्षण का क्या फायदा होगा?
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बीजेपी नेता ने कहा कि कांग्रेस सरकार केवल मुस्लिमों को ही अल्पसंख्यक मानकर चल रही है, जबकि अन्य समुदायों जैसे मदिवाला, सविता और अन्य पिछड़े वर्गों की भी आर्थिक रूप से मजबूती की जरूरत है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इन समुदायों को मुख्यधारा में लाने के बजाय केवल एक विशेष वर्ग के तुष्टीकरण में लगी हुई है।
इस विवाद के बीच, सरकार ने कर्नाटक ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट (KTPP) अधिनियम में संशोधन को कैबिनेट में पास कर दिया है। राज्य सरकार का तर्क है कि यह आरक्षण सिर्फ मुस्लिमों तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों को सरकारी ठेकों में भागीदारी बढ़ाने के लिए दिया जा रहा है। अब देखना यह होगा कि यह मुद्दा आगामी चुनावों में कितना बड़ा राजनीतिक विवाद बनता है। क्या कांग्रेस अपने इस फैसले को जनता के बीच सही ठहराने में सफल होगी या फिर बीजेपी इसे तुष्टीकरण के रूप में पेश कर जनता का विश्वास जीतने की कोशिश करेगी?