बच्चों में मूड डिसॉर्डर क्यों होता है एक्टिव (सौ. सोशल मीडिया)
बचपन वह दौर है जहां पर बच्चों का मन और मस्तिष्क नाजुक होते है। यानि बच्चे जो देखते है आसपास समझते है उसकी वजह से या तो सीखते हैं या फिर दिमाग को प्रभावित कर लेते है। कई बार बच्चे अपने साथ हुए किसी बुरी घटना से दिमाग पर तनाव लेते है। अगर बच्चों को माता-पिता का सही तरीके से प्यार नहीं मिल पाए तो बचपन का तनाव, बच्चे के जीवन में हमेशा बना रहता है।
यहां पर हालिया रिसर्च में इस बात का खुलासा किया गया है कि बचपन की मुश्किलें मस्तिष्क की संरचना और रोग प्रतिरोधक क्षमता में स्थायी बदलाव लाती हैं। जिससे अवसाद, बाइपोलर डिसऑर्डर और अन्य मानसिक खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जानिए स्पष्ट रूप से जानते हैं इसके बारे में…
रिसर्च को लेकर इटली के मिलान के (IRCCS) ओस्पेडाले सैन रैफेल के वरिष्ठ रिसर्चकर्ता सारा पोलेटी ने इसे लेकर बताया है। कहा कि बच्चों में इम्यूनिटी का काम केवल बीमारियों से लड़ने का नहीं बल्कि मेंटल हेल्थ को एक्टिव और मैपिंग करने से होता है। अगर बच्चे में बचपन से किसी प्रकार का तनाव घर कर लेते है तो इसका खतरा बच्चे के जीवन पर हमेशा रहता है। मानसिक बीमारियों के तौर पर बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, मूड डिसऑर्डर दुनिया भर में अक्षमता, बीमारी और मृत्यु का प्रमुख कारण हैं, भविष्य में डिप्रेशन की स्थिति बने रहने की दर करीब 12 फीसदी और बाइपोलर डिसऑर्डर की 2 प्रतिशत तक रह जाती है।
रिसर्च में यह भी खुलासा किया गया हैं कि, सूजन संकेतक (इन्फ्लेमेटरी मार्कर्स), जो बचपन के तनाव से जुड़े होते है। जहां पर भविष्य में मानसिक बीमारियों के नए और बेहतर उपचार विकसित करने के लिए आधार बन सकते हैं। बताया जाता है कि, ये संकेतक डॉक्टरों को यह समझने में मदद करेंगे कि बीमारी का इलाज कैसे किया जाए। बच्चों में इस प्रकार की स्थिति को काबू में लाने के लिए माता-पिता को बच्चे पर ध्यान देना जरूरी है। यह जानना चाहिए कि, बच्चा किसी अवसाद से तो नहीं गुजर रहा है।