किडनी की समस्या से जूझती बच्ची (सौ. फ्रीपिक)
Children Kidney Disease: आमतौर पर किडनी की बीमारियां बुजुर्गों से जुड़ी हुई मानी जाती है। लेकिन अब मासूम बच्चे भी इस बीमारी के चपेट में आने लगे हैं। नेफ्रोटिक सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिससे किडनी शरीर से प्रोटीन बाहर निकलने लगती है। अगर सही समय पर इसकी पहचान नहीं की गई तो यह किडनी की पूरी तरह डैमेज कर सकती है।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम कोई एक बीमारी नहीं है बल्कि लक्षणों का एक समूह है जो यह संकेत देता है कि बच्चों की किडनी ठीक से काम नहीं कर रही है। किडनी का काम खून को फिल्टर करना है लेकिन इस बीमारी में किडनी के फिल्टर डैमेज हो जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप शरीर के लिए जरूर प्रोटीन पेशाब के रास्ते से बाहर निकलने लगते हैं। जब शरीर में प्रोटीन की कमी होती है तो अंगों में पानी भरने लगता है और उससे सूजन दिखाई देने लगती है। यह समस्या ज्यादातर 2 से 6 साल के बच्चों में ज्यादा देखी जाती है।
अक्सर माता पिता बच्चों की आंखों के आसपास की सूजन को एलर्जी या नींद की कमी समझ लेते हैं। लेकिन इन लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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ज्यादातर मामलों में नेफ्रोटिक सिंड्रोम का सटीक कारण पता नहीं चल पाता है जिसे इडियोपैथिक कहा जाता है। हालांकि कुछ मामलों में यह संक्रमण, जेनेटिक कारणों या इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी की वजह से हो सकता है। अच्छी खबर यह है कि समय रहते पहचान होने पर स्टेरॉयड दवाओं और सही डाइट से इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।
अगर आपके बच्चे में ऐसे लक्षण दिखें, तो तुरंत पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करें। इलाज के दौरान बच्चे की डाइट में नमक की मात्रा कम रखें और बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी पेन किलर या दवा न दें। समय पर यूरिन टेस्ट और ब्लड टेस्ट कराना बच्चे की किडनी को सुरक्षित रखने का एकमात्र तरीका है।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम डरावना जरूर लग सकता है लेकिन जागरूकता और सही मेडिकल केयर से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। बच्चों की सेहत में मामूली बदलाव को हल्के में न लें।