मुंबई: कलाकार की पहचान कला की वजह से होती है, लेकिन कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जो कला को ही नई पहचान दे देते हैं। उस्ताद जाकिर हुसैन का नाम उन्हीं कलाकारों में से एक है जिन्हें तबले की वजह से पहचान मिली लेकिन उन्होंने तबला वादन को एक नए मुकाम पर पहुंचाया। जाकिर हुसैन को शास्त्रीय संगीत की कला उनके पिता उस्ताद अल्ला रखा खान से विरासत में मिली थी। वह मशहूर तबला वादक थे। बचपन से ही तबले की ट्रेनिंग में नहीं मिलने लगी। उन्होंने सात आठ साल की उम्र में ही तबले पर कमाल दिखाना शुरू कर दिया था और 11 साल की उम्र में वह प्रोफेशनल तौर पर तबला वादक बन गए। 11 साल की उम्र में उन्होंने अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया था। तबले को वो सरस्वती मानते थे और तबले की हिफाजत और इबादत करना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। मशहूर तबला वादक उस्ताद अल्ला रखा खान के घर जन्मे जाकिर हुसैन को बचपन से ही तबला वादन की शिक्षा मिलने लगी। पूरी लगन के साथ उन्होंने तबला बजाना सीखा। महज 3 साल की उम्र में ही उन्होंने पखवाज बजाना सीख लिया था। 11 साल की उम्र में ही जाकिर हुसैन ने संगीत के अपने सफ़र की औपचारिक शुरुआत की।
11 साल की उम्र में अमेरिका में उनका पहला कॉन्सर्ट हुआ था। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। वह लगातार एक के बाद एक कॉन्सर्ट और एल्बम रिलीज करते चले गए। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उस्ताद जाकिर हुसैन का महान योगदान रहा है। साल 1988 में पद्मश्री और साल 2002 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके बाद 2009 में उन्हें संगीत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवॉर्ड से भी नवाजा गया।
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जाकिर हुसैन ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान यह बताया था कि बचपन में यात्रा के दौरान कई बार उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि रिजर्व्ड कोच में अपनी सीट बुक कर सकें, तो ऐसे में वह ट्रेन में नीचे अखबार बिछा कर बैठा करते थे, लेकिन तबले को वह अपने गोद में रखते थे, क्योंकि वह यह नहीं चाहते थे कि किसी का पैर या जूता, चप्पल तबले पर लगे, कई बार इसकी वजह से उन्हें दिक्कत भी पेश आई, सफर करने वाले यात्री उन्हें तबला अलग रखने की सलाह भी देते थे। जाकिर हुसैन को तबले का जादूगर कहा जाता है। देश और दुनिया भर में लोग उनके तबला वादन को देखना और सुनना चाहते हैं। जाकिर हुसैन के बारे में यह कहा जाता है कि जब वह तबला बजाते हैं तो उन्हें सुनने वाले लोग अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं।