उदयपुर फाइल्स (फोटो-सोर्स,सोशल मीडिया)
Udaipur Files: राजस्थान के चर्चित कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने फिल्म को सेंसर बोर्ड द्वारा मंजूरी दिए जाने पर गंभीर आपत्ति जताई है।
संगठन का आरोप है कि इस तरह की फिल्मों को हरी झंडी दिखाकर सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) देश के सामाजिक माहौल को खराब करने का काम कर रहा है।
जमीयत के लीगल एडवाइजर सैयद मौलाना काब रशीदी ने मीडिया से बातचीत में बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर फिलहाल अंतरिम रोक लगाकर एक अहम कदम उठाया है। यह निर्णय जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की उस याचिका के बाद आया जिसमें उन्होंने ‘उदयपुर फाइल्स’ को समाज में नफरत और सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाली फिल्म बताया।
कोर्ट ने जमीयत को सिनेमैटोग्राफ एक्ट की धारा-6 के तहत केंद्र सरकार को अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए दो दिन का समय दिया है। इसके बाद केंद्र सरकार को सात दिनों के भीतर इस पर निर्णय लेना होगा।
जमीयत का दावा है कि फिल्म का ट्रेलर भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के विवादित बयान से शुरू होता है, जिसने वर्ष 2022 में देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को धक्का पहुंचाया था। इस बयान के कारण भारत को कई इस्लामिक देशों की आलोचना झेलनी पड़ी थी और भाजपा को नूपुर शर्मा को छह साल के लिए पार्टी से बाहर करना पड़ा था।
रशीदी ने आरोप लगाया कि फिल्म में दारुल उलूम देवबंद और अन्य मुस्लिम धर्मगुरुओं को गलत तरीके से आतंकवाद से जोड़कर दिखाया गया है, जो न सिर्फ भारतीय संस्कृति का अपमान है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के 2022 के ‘हेट स्पीच’ संबंधी फैसले का भी उल्लंघन करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरल स्टोरी’ जैसी फिल्में पहले भी विवादों में रही हैं, जिनका मकसद मनोरंजन नहीं बल्कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रहा है। उन्होंने सेंसर बोर्ड से मांग की कि वह ऐसी फिल्मों को प्रमाणित करने से पहले उनके सामाजिक प्रभावों का मूल्यांकन करे।
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जमीयत को उम्मीद है कि कोर्ट से उन्हें न्याय मिलेगा और ऐसी फिल्में, जो समाज में जहर घोल सकती हैं, उनकी रिलीज पर पूर्ण रोक लगेगी। संगठन ने कोर्ट के अंतरिम आदेश को समय पर लिया गया अहम फैसला बताया है, जो संभावित हिंसा और अशांति को रोकने में मददगार साबित हो सकता है।
(इनपुट एजेंसी के साथ)