थामा फिल्म रिव्यू: स्त्री जैसा जादू बरकरार, फिल्म में है हद से ज्यादा सरप्राइज
Thamma Review: मैडॉक फिल्म्स एक बार फिर अपनी हर नई रिलीज़ के साथ स्तर को और ऊँचा कर रही है। स्त्री से शुरू हुआ उनका हॉरर-कॉमेडी एक्सपेरिमेंट अब एक रोमांचक सिनेमैटिक यूनिवर्स में बदल चुका है। थामा के साथ, उन्होंने दर्शकों की उम्मीदों से कहीं ज़्यादा दिया है — यह फिल्म डराती भी है, दिल को छूती भी है और अंत तक जोड़े रखती है।
थामा रहस्य, पौराणिकता, पारिवारिक भावनाओं और फैंटेसी का बेहतरीन मिश्रण है — कहानी नई है, पर कहीं न कहीं पुरानी लोककथाओं और यादों की खुशबू लिए हुए है।आदित्य सरपोतदार के निर्देशन में बनी यह फिल्म पारंपरिक हॉरर clichés से हटकर है। यह कहानी दिखाती है कि कैसे डर और दिल साथ-साथ चल सकते हैं।
कहानी एक रहस्यमयी जंगल से शुरू होती है, जहाँ भूली-बिसरी दंतकथाएँ फिर से ज़िंदा होने लगी हैं। फिल्म का नाम थामा जरूर है, लेकिन ये सिर्फ़ एक किरदार की कहानी नहीं — बल्कि एक पूरी दुनिया की झलक दिखाती है, जिसमें अपने नियम, अपने रक्षक और अपनी रहस्यमयी शक्ति है।
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कहानी के केंद्र में हैं आयुष्मान खुराना, जो एक छोटे शहर के पत्रकार का किरदार निभा रहे हैं। शुरू में उनका किरदार हल्का-फुल्का और सहज लगता है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, उनका अभिनय और गहराई पकड़ लेता है। यह रोल उनकी तैयारी और समर्पण को साबित करता है।
रश्मिका मंदाना ने अपने किरदार में जबरदस्त संतुलन दिखाया है — नर्मी और जोश का सुंदर मेल। उनकी स्क्रीन प्रेज़ेंस सच्ची और भावनात्मक लगती है। वह वाकई अब देश की चहेती अदाकारा बन चुकी हैं।
एक्शन सीक्वेंस शानदार हैं और आलोक (आयुष्मान) और भेड़िया (वरुण धवन) के बीच का अप्रत्याशित आमना-सामना फिल्म का सबसे बड़ा हाइलाइट है। यही वह पल है जो मैडॉक यूनिवर्स को एक नए मोड़ पर ले जाता है।
और जब आपको लगता है कि अब सब कुछ देख लिया — तभी स्त्री का डरावना “सरकटा” भूत दोबारा लौटता है! यह सरप्राइज़ न सिर्फ़ दर्शकों को रोमांचित करता है, बल्कि थामा को स्त्री 2 से जोड़ता है और आने वाले बड़े क्रॉसओवर की झलक देता है।
परेश रावल ने व्यंग्य और हाज़िरजवाबी से भरे पिता के किरदार में खूब हंसाया।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का गहरा और प्रभावशाली अभिनय कहानी में रहस्य जोड़ता है।
सत्यराज, जो “एल्विस” के रूप में लौटे हैं, हास्य के साथ-साथ यूनिवर्स को जोड़ने वाली एक नई परत लाते हैं।
यहाँ तक कि नोरा फतेही की छोटी सी भूमिका भी सिर्फ़ ग्लैमर के लिए नहीं है — वह स्त्री की कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई लगती हैं और भविष्य के कई रहस्यों की चाबी बन सकती हैं।
फिल्म के गाने भी कहानी का हिस्सा हैं — हर गाना किसी किरदार या घटना को आगे बढ़ाता है। कोई भी गाना फालतू या सिर्फ़ दिखावे के लिए नहीं रखा गया। कुल मिलाकर, थामा सिर्फ़ हॉरर-कॉमेडी नहीं है, बल्कि एक भावनात्मक, रहस्यमय और विज़ुअली शानदार फिल्म है जो भारतीय सिनेमाघरों में एक नया अध्याय खोलती है।
मैडॉक हॉरर यूनिवर्स के पीछे की सोच रखने वाले दिनेश विजान को इसका श्रेय जाता है — उनका विज़न अब सच होता दिख रहा है, जहां भारतीय लोक कथाएं, हॉरर और भावना एक साथ बंधी हैं। थामा जादू, रहस्य और दिल की गहराइयों का संगम है — एक ऐसी फिल्म जो परिवार के साथ देखने लायक है और इस दिवाली को यादगार बना देगी!