
जोनाथन नोलन ने माना बॉलीवुड का लोहा, कहा- भारतीय सिनेमा में वह 'निडरता और महत्वाकांक्षा' है जो हॉलीवुड में नहीं दिखती
Bollywood vs Hollywood: ‘वेस्टवर्ल्ड’ और ‘फॉलआउट’ जैसी प्रशंसित सीरीज़ के निर्माता जोनाथन नोलन ने एक बार फिर भारतीय सिनेमा की खुलकर प्रशंसा की है। अपनी बहुप्रतीक्षित सीरीज ‘फॉलआउट सीजन 2’ के प्रीमियर की तैयारी के बीच, नोलन ने भारतीय फिल्म उद्योग में मौजूद उस ‘निडरता और महत्वाकांक्षा’ की सराहना की, जो उन्हें हॉलीवुड के पारंपरिक स्टूडियो सिस्टम में तेज़ी से कम होती दिखाई देती है।
नोलन पहले ही भारतीय फिल्म उद्योग को हॉलीवुड से बड़ा बता चुके हैं। उनके अनुसार, भारतीय सिनेमा का उदय सिर्फ़ आकार की बात नहीं है, बल्कि यह उस रचनात्मक और साहसी भावना के बारे में है जो यहाँ दिखती है।
जब जोनाथन नोलन से पूछा गया कि बॉलीवुड (भारतीय सिनेमा) को हॉलीवुड से क्या खास बनाता है, तो लेखक-निर्देशक ने स्पष्ट जवाब दिया। नोलन ने कहा, “मुझे लगता है यह बहुत स्पष्ट है, और आप दुनिया भर में भारतीय फिल्म निर्माण के प्रति एक खास आकर्षण देख ही रहे हैं। अपने सर्वोत्तम रूप में यह निडर है। हॉलीवुड भी ऐसा हो सकता है। लेकिन (भारत में) एक ऐसी महत्वाकांक्षा है जो बेहद रोमांचक है।”
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यह ‘निडर’ दृष्टिकोण हॉलीवुड में कम देखने को मिलता है, जहाँ स्टूडियो अक्सर प्रयोगों से बचते हैं। नोलन का यह बयान भारतीय फिल्मकारों की बड़ी कहानियाँ कहने और बड़े पैमाने पर फ़िल्में बनाने की क्षमता को रेखांकित करता है।
जोनाथन नोलन का यह साहसिक दृष्टिकोण उनकी सीरीज ‘फॉलआउट’ के काम में भी दिखता है, जहाँ दांव ऊँचे हैं और दुनिया बनाने में कोई समझौता नहीं होता।
कहानी: यह प्रशंसित सीरीज अमीरों और गरीबों की कहानी को आगे बढ़ाती है, जो महाप्रलय के दो सौ साल बाद एक रेडिएटेड नरक में जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लक्ज़री शेल्टर के निवासियों को मजबूरी में उस अत्यधिक हिंसक और जटिल दुनिया में लौटना पड़ता है, जिसे उनके पूर्वजों ने पीछे छोड़ दिया था।
भारतीय रिलीज़: किल्टर फिल्म्स द्वारा निर्मित ‘फॉलआउट सीजन 2’ का प्रीमियर भारत में 17 दिसंबर को विशेष रूप से प्राइम वीडियो पर किया गया। पहले तीन एपिसोड अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में डब किए गए हैं, जो भारत में नोलन की लोकप्रियता को दर्शाता है।
नोलन द्वारा भारतीय फिल्मकारों की प्रशंसा करना यह दर्शाता है कि वैश्विक मंच पर भारतीय सिनेमा की रचनात्मक पहुँच कितनी बढ़ गई है।






