बहुमुखी प्रतिभा के धनी सचिन पिलगांवकर (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
Sachin Pilgaonkar Brief Bio: भारतीय सिनेमा जगत में एक से बढ़कर एक अभिनेता हुए, जिन्होंने अपने कार्य की बारीकीयों की मदद से विश्व स्तर पर अपनी अमिट पहचान कायम की है। दिग्गज अभिनेता सचिन पिलगांवकर उन काबिल अभिनेताओं की सूचि में सबसे आगे हैं। इन्होंने बाल कलाकार के रूप में अपने फिल्मी सफर की शुरूआत की। निर्देशन से लेकर अभिनय तक का नायाब सफर सीढी दर सीढी तय किया।
आज उनका जीवन हर युवा के लिए प्रेरणा की स्त्रोत है। हर एक अपकमिंग आर्टिस्ट उनके करियर की बारीकियों, सही समय पर लिए गए उनके निर्णय, हर विधा को सीखने की उनकी चाह के जरिए बहुत कुछ जान सकता है। आज 67 वें साल के सचिन ने अपने जन्मदिन पर आईएनएस से खास बातचीत में अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर बातचीत की।
जब बात आती है हिंदी सिनेमा के उन कलाकारों की जो समय के साथ नहीं बदले, तो सचिन पिलगांवकर का नाम सबसे ऊपर आता है। सिर्फ उनकी आवाज और हाव-भाव ही नहीं, बल्कि उनका चेहरा भी बिलकुल वैसा ही है जैसे 40-50 साल पहले था। 67 की उम्र में भी वह अभी भी लुक के मामले में युवाओं को टक्कर देते हैं और उनका अभिनय, वह तो वक्त के साथ और भी गहरा और दमदार होता गया। सचिन की कहानी सिर्फ उनके चेहरे और अभिनय की खूबसूरती तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी बहुमुखी प्रतिभा से रंगीन है।
1975 की सुपरहिट फिल्म ‘शोले‘ में सचिन ने, न केवल रहीम चाचा के बेटे अहमद का रोल में निभाया था, बल्कि वह फिल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर भी थे। इस फिल्म की शूटिंग लगभग दो साल चली थी, और उस समय निर्देशक रमेश सिप्पी इतने सारे हिस्सों की शूटिंग एक साथ संभाल नहीं पा रहे थे।
इसलिए उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ अलग-अलग यूनिट बनाई। एक्शन सीन और दूसरे बड़े सीन की अलग-अलग टीमों ने काम किया। इसी बीच, रमेश सिप्पी ने सचिन को सेकंड यूनिट का जिम्मा सौंपा, यानी वे एक्शन सीन के शूट की निगरानी असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर करेंगे।
वैसे ये जिम्मेदारी किसी भी नए या आम कलाकार को नहीं दी जाती, लेकिन सचिन की लगन और फिल्म से जुड़ाव को देखकर सिप्पी ने उन्हें चुना। सचिन ने न सिर्फ स्क्रीन पर अभिनय किया, बल्कि फिल्म के पीछे जाकर भी काम संभाला। इस किस्से का खुलासा खुद सचिन ने मीडिया से बातचीत के दौरान किया।
17 अगस्त 1957 को मुंबई के एक कोंकणी परिवार में जन्मे सचिन पिलगांवकर सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल हैं। उनकी कहानी बचपन से ही खास रही है, जब वे महज चार साल के थे।
राजा परांजपे की मराठी फिल्म ‘हा माझा मार्ग एकला’ से उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा, और इस बेहतरीन शुरुआत के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
इसके बाद उन्होंने कई बाल कलाकार के रूप में यादगार फिल्में दीं, जैसे ‘अजब तुझे सरकार’, जिसके लिए उन्हें एक बार फिर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया।
बचपन में मिली इस कामयाबी ने सचिन को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उन्होंने लीड एक्टर के तौर पर ‘गीत गाता चल’, ‘बालिका वधू’, ‘अंखियों के झरोखों से’, और ‘नदिया के पार’ जैसी फिल्मों में लीड रोल निभाकर अपनी प्रतिभा का जादू बिखेरा। हर किरदार में उनकी सहजता और दमदार अभिनय को खूब सराहा गया।
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वह सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं रहे, सचिन; उन्होंने हिंदी, मराठी, कन्नड़ और भोजपुरी सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी। साथ ही, टीवी की दुनिया में भी उन्होंने कमाल किया।
‘तू तू मैं मैं’ और ‘कड़वी खट्टी मीठी’ जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में उनके अभिनय ने दर्शकों का दिल जीत लिया। न सिर्फ एक अभिनेता, बल्कि एक निर्देशक के रूप में भी उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। सचिन पिलगांवकर की यह सफर लोगों के लिए प्रेरणादायक है।
(एजेंसी इनपुट)