
अशोक कुमार (सोर्स: सोशल मीडिया)
Ashok Kumar Death Anniversary: हिंदी सिनेमा में अगर किसी ने सहजता, स्टाइल और संजीदा अभिनय से अपनी खास जगह बनाई है, तो वह थे अशोक कुमार, जिन्हें प्यार से दर्शक ‘दादा मुनि’ कहकर बुलाते हैं। नायक हो या खलनायक, जज या पुलिस इंस्पेक्टर, पिता हो या दोस्त हर किरदार में उनकी नैचुरल एक्टिंग ने दर्शकों को मोहित कर दिया। 10 दिसंबर को अशोक कुमार की पुण्यतिथि है और इस मौके पर उनके फिल्मी सफर को याद किया जा रहा है।
अशोक कुमार का असली नाम कुमुदलाल गांगुली था। बिहार के भागलपुर में जन्मे अशोक कुमार ने शुरू में वकालत की पढ़ाई की, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उनकी दोस्ती शशधर मुखर्जी से हुई, जिन्होंने बाद में उनकी बहन सती रानी से शादी की। शशधर उस समय बॉम्बे टॉकीज में काम कर रहे थे और उन्होंने अशोक को मुंबई बुला लिया।
साल 1936 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘जीवन नैया’ में लीड हीरो नजम-उल-हसन चुने गए थे, लेकिन उन्होंने आखिरी समय में मना कर दिया। इस मौके पर प्रोड्यूसर हिमांशु राय की नजर अशोक कुमार पर पड़ी और उन्होंने उन्हें ऑफर दिया, हीरो बनोगे? तुम्हें एक्टिंग करने का मौका मिल रहा है। दो-चार फिल्में करके देखो, मन न लगे तो छोड़ देना। इस वाक्य ने भारतीय सिनेमा को उसका पहला सुपरस्टार दे दिया।
‘जीवन नैया’ की सफलता के बाद अशोक कुमार की फिल्म ‘अछूत कन्या’ रिलीज हुई और रातोंरात वह स्टार बन गए। देविका रानी के साथ उनकी जोड़ी ने दर्शकों को खूब पसंद आई। सहज अभिनय और नैचुरल डायलॉग डिलीवरी ने उन्हें अलग पहचान दिलाई। उन्होंने अपने काम में पूरी मेहनत और लगन दिखाई, सेट पर डायलॉग प्रैक्टिस करके हर बार बेहतरीन परफॉर्मेंस दी।
अशोक कुमार ने ‘किस्मत’, ‘हावड़ा ब्रिज’, ‘कंगन’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘बंधन’, ‘झूला’, ‘बंदिनी’ जैसी कई यादगार फिल्मों में काम किया और 100 से ज्यादा फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 1988 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अलावा उन्होंने 1962 में पद्म श्री और 1999 में पद्म भूषण भी हासिल किया।






