सिकटी विधानसभा चुनाव (सोर्स- डिजाइन)
Sikti Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच अररिया जिले की सिकटी विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक दलों के लिए रणनीतिक रूप से अहम बन गई है। पिछले दो दशकों से भाजपा और जदयू का मजबूत गढ़ रही यह सीट अब विपक्षी दलों के लिए चुनौती और अवसर दोनों बन चुकी है। इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प और कठिन होने की संभावना है।
1951 में पालासी विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित यह सीट 1977 से सिकटी के नाम से जानी जाती है। 2008 के परिसीमन के बाद इसमें सिकटी, कुरसाकांटा और पालासी प्रखंड की 10 ग्राम पंचायतें शामिल की गईं। यह पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है, जहां शहरी मतदाता नहीं हैं।
1951 से 1972 तक कांग्रेस ने तीन बार, निर्दलीय ने दो बार और स्वतंत्र पार्टी ने एक बार जीत दर्ज की। 1977 के बाद हुए 11 विधानसभा चुनावों में भाजपा ने चार बार, कांग्रेस ने तीन बार, निर्दलीय ने दो बार और जनता दल व जदयू ने एक-एक बार जीत हासिल की।
इस सीट पर मोहम्मद अजीमुद्दीन का लंबे समय तक दबदबा रहा। उन्होंने 1962 (स्वतंत्र पार्टी), 1967, 1969, 1977 (निर्दलीय) और 1990 (जनता दल) के टिकट पर जीत दर्ज की। 2010 से भाजपा ने इस सीट पर लगातार जीत दर्ज की है। आनंदी प्रसाद यादव ने 2010 में जीत हासिल की, जिसके बाद विजय कुमार मंडल ने 2010, 2015 और 2020 में लगातार जीत दर्ज की। 2020 में मंडल ने राजद के शत्रुघ्न प्रसाद सुमन को 13,610 वोटों से हराया।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 में सिकटी विधानसभा क्षेत्र में 2,88,031 रजिस्टर्ड मतदाता थे। इनमें मुस्लिम मतदाता 32.10% और अनुसूचित जाति के मतदाता 12.78% थे। ग्रामीण क्षेत्र होने के बावजूद 62.36% मतदान दर्ज किया गया था। 2024 के लोकसभा चुनाव तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,00,389 हो गई। यहां का जातीय और धार्मिक समीकरण चुनावी रणनीति को प्रभावित करता है। मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या विपक्षी दलों के लिए उम्मीद की किरण हो सकती है, जबकि भाजपा अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत बनाए रखने की कोशिश में है।
सिकटी भारत-नेपाल सीमा के करीब स्थित है और अररिया जिले के उत्तरी हिस्से में आता है। पटना से इसकी दूरी लगभग 330 किमी है। आसपास के प्रमुख कस्बों में फारबिसगंज (28 किमी), जोकीहाट (25 किमी), किशनगंज (60 किमी) और बहादुरगंज (45 किमी) शामिल हैं। नेपाल का बिराटनगर यहां से सिर्फ 35 किमी दूर है। सड़क मार्ग बिहार और नेपाल को जोड़ता है, जबकि रेल सुविधा अररिया और फारबिसगंज से उपलब्ध है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण यह सीट सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
सिकटी की जमीन उपजाऊ है, लेकिन मानसून के दौरान जलभराव की समस्या आम है। यहां धान, गेहूं, मक्का और सरसों प्रमुख फसलें हैं। कुछ क्षेत्रों में दलहन और जूट की खेती भी होती है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था होने के कारण यहां रोजगार के अवसर सीमित हैं। युवाओं को रोजगार के लिए अन्य राज्यों की ओर पलायन करना पड़ता है। यही कारण है कि विकास और रोजगार इस बार के चुनाव में अहम मुद्दे बन सकते हैं। सिंचाई सुविधाओं की कमी, जलभराव, सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी मतदाताओं की प्राथमिकता में शामिल हैं।
यह भी पढ़ें: Bihar Election: टिकट कटने पर पहली बार छलका सीमा कुशवाहा का दर्द, RJD-तेजस्वी के लेकर कही ये बात
सिकटी विधानसभा सीट पर भाजपा का दबदबा पिछले तीन चुनावों से बना हुआ है, लेकिन 2025 के चुनाव में विपक्षी दलों की रणनीति और स्थानीय मुद्दे इस समीकरण को बदल सकते हैं। मुस्लिम और दलित मतदाताओं की भूमिका निर्णायक हो सकती है, वहीं भाजपा अपने संगठन और विकास के एजेंडे के साथ मैदान में उतरेगी। अब देखना यह है कि क्या सिकटी में भाजपा अपना गढ़ बचा पाएगी या विपक्ष इस बार सेंध लगाने में सफल होगा। मतदाताओं का रुख ही तय करेगा कि यह सीट किसके हाथ जाएगी।