तेज प्रताप सिंह बनाम अनुजेश यादव (सौ. से सोशल मीडिया)
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में विधानसभा के हो रहे उपचुनाव के दौरान सबकी नजर एक बार फिर से मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट पर है, जहां पर दो दामादों के बीच कड़ी टक्कर दिखाई दे रही है। इसके लिए दोनों मुख्य दलों के द्वारा यादव वोटों को समेटने के साथ साथ अन्य जातियों के वोटों में सेंध लगाने के लिए प्रत्यक्ष व परोक्ष तरीके से कोशिश की जा रही है। अखिलेश यादव के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न है, क्योंकि इस सीट के हारने पर उनके अपने गढ़ में कमजोर होने का गलत संदेश जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी जहां एक ओर सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई को मैदान में उतारकर इस लड़ाई को जीतने की भरपूर कोशिश की है, वहीं समाजवादी पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मुलायम सिंह यादव के पोते और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद तेज प्रताप सिंह यादव को मैदान में उतारा है। इसलिए यहां की लड़ाई दो दामादों के बीच हो गई है और दोनों दामाद स्व. मुलायम सिंह यादव के ही परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इसलिए यादव वोटों के बंटवारे और अन्य जातियों के वोट बटोरने में दोनों दलों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
घर में सेंध लगाने की कोशिश
राजनीति विश्लषकों का कहना है कि मैनपुरी की करहल सीट इस बार मुलायम परिवार के लिए घरेलू अखाड़ा बन गई है। यह सीट वैसे तो सपा के गढ़ वाली मानी जाती है, जहां पर साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल को हराकर अपने दमखम को साबित किया था। लेकिन इस बार भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के दामाद और सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को टिकट देकर घर में सेंध लगाने की कोशिश की है।
“आज चुनाव के नामांकन का आखिरी दिन है। बीजेपी की भी सूची आ गई है। जो नारा वो लगाते थे कि हम लोग परिवारवादी हैं लेकिन बीजेपी हम लोगों से और आगे निकल गई अब वो ‘रिश्तेदारवादी’ हो गए हैं।”
— माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव जी, करहल pic.twitter.com/MKo1TuDCpz
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) October 25, 2024
लालू प्रसाद के दामाद की प्रतिष्ठा दांव पर
समाजवादी पार्टी ने यहां से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के पोते और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के दामाद तेज प्रताप को मैदान में उतारकर यह सीट परिवार में रखने की कोशिश की है। करहल विधानसभा के इतिहास को देखा जाए तो यह सीट शुरू से ही सपा का गढ़ रही है।
इस सीट पर सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद उपचुनाव हो रहे हैं। अखिलेश अब कन्नौज से सांसद चुने गए है। उन्होंने यह सीट खाली की है और अपने भतीजे तेजप्रताप को यहां से उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं भाजपा ने 2002 वाला इतिहास दोहराने के लिए दूसरी बार यादव चेहरे पर दांव लगा दिया है।
आपको याद होगा कि इससे पहले 2002 में सोबरन सिंह यादव भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर चुके हैं। हालांकि, बाद में उन्होंने समाजवादी पार्टी का ही दामन थाम लिया था। यादव मतों की बहुलता वाली इस विधानसभा सीट पर वर्ष 1993 से 2022 तक हुए सात विधानसभा चुनावों में से 6 बार सपा जीती हैं. जबकि भाजपा केवल एक बार वर्ष 2002 में जीत पायी है। बीते चार चुनावों से सपा लगातार विरोधियों को पटखनी देती आ रही है, जिससे उसके हौसले बुलंद हैं।
वर्ष 2022 में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपना पहला विधानसभा चुनाव इसी सीट पर लड़कर विधानसभा में योगी सरकार को घेरने की कोशिश की थी। उपचुनाव में अखिलेश यादव की विरासत संभालने के लिए अब परिवार के ही पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को प्रत्याशी घोषित किया है। इसी के कारण भाजपा ने परिवार में ही फूट डाल कर सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को पार्टी के टिकट पर लड़ने के लिए मना लिया।
गढ़ में सेंध लगाने की एक और कोशिश
राजनीतिक मामलों के जानकारों और चुनावी रणनीतिकारों के मुताबिक यादव बाहुल्य यह सीट वैसे तो कई सालों से सपा का गढ़ मानी जाती है। क्योंकि यहां के लोग यहां प्रत्याशी को देखकर नहीं, सपा के नाम पर वोट दिया करते हैं। लेकिन भाजपा ने मैनपुरी जिले की भोगांव विधानसभा व मैनपुरी विधानसभा की सीट जीतकर दिखा दिया है कि गढ़ में सेंध लगायी जा सकती है।
वैसे अगर देखा जाए तो पूरे मैनपुरी जनपद में ही समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा। लेकिन 2017 के चुनाव में भोगांव विधानसभा और 2022 के चुनाव में मैनपुरी विधानसभा की सीट भाजपा ने सपा से छीन ली थी। फिलहाल ताजा हालात में देखा जाए तो यहां चार में से दो विधायक, मैनपुरी से जयवीर सिंह, भोगांव से रामनरेश अग्निहोत्री भाजपा के हैं और किशनी से बृजेश कठेरिया और करहल से अखिलेश यादव सपा से चुने गए थे। अखिलेश ने करहल से इस्तीफा दे दिया है। इस सीट से सोबरन सिंह यादव चार बार और बाबूराम यादव पांच बार विधायक चुने जा चुके हैं।
ऐसा वोटों का गणित
आंकड़ों में देखा जाए तो करहल विधानसभा में तकरीबन तीन लाख 75 हजार मतदाता है। जातीय समीकरण की बात करें, तो यहां एक लाख 30 हजार यादव और 60 हजार अनुसूचित जाति के मतदाता बताए जाते हैं। इसके साथ ही 50 हजार शाक्य, 30 हजार ठाकुर, 30 हजार पाल व बघेल समाज, 25 हजार मुस्लिम, 20 हजार लोधी, 20 हजार ब्राह्मण और 15 हजार के करीब बनिया समाज के मतदाता गिने जाते हैं।
इसे भी पढ़ें..वैशाली सूर्यवंशी की जीत निश्चित है – आदित्य ठाकरे, पाचोरा की सभा में सत्ताधारियों पर हल्लाबोल
करहल के स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि करहल में अब सपा बनाम भाजपा नहीं, बल्कि यादव बनाम यादव की लड़ाई होगी। लेकिन, मतदाताओं का झुकाव सपा की तरफ ज्यादा दिखाई दे रहा है। भाजपा ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है। सपा की ओर से अखिलेश यादव ने खुद कमान संभाल रखी है। करहल सीट पर दो दामादों का मुकाबला है। एक लालू के तो दूसरे मुलायम के यहां से भाजपा ने 2002 में चुनाव जीता था। इसके बाद सोबरन सिंह सपा में शामिल हो गए। उसके बाद से यह सीट लगातार सपा के पास बरकरार है।
यहां पर जातीय समीकरण को देखें तो सबसे ज्यादा यादव है। इसके बाद शाक्य और पाल है। भाजपा उम्मीदवार की पहचान भाजपा के उम्मीदवार के रूप में नहीं, बल्कि धर्मेंद्र यादव के बहनोई के रूप में अधिक जाने जाते रहे हैं। इनकी मां सपा से विधायक रह चुकी हैं। भाजपा का यह दांव कितना फिट होगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा।
एक बार फिर से पूरा सैफई परिवार इस चुनाव में एकजुट नजर आ रहा है। इसकी बानगी नामांकन के दौरान देखने को मिली। तेज प्रताप के प्रचार में डिंपल यादव भी लगातार अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं।
इसे भी पढ़ें..प्रियंका गांधी- जन प्रतिनिधि के रूप में मेरी पहली यात्रा, ‘जन सेनानी’ के रूप में नहीं
स्थानीय जानकारों का कहना है कि भाजपा ने यहां पर 2002 का पाशा फेंका है। अगर यह दोबारा चला तो परिणाम में फेरबदल की संभावना बन सकती है, लेकिन ताजा हालात में मुश्किल लग रहा है। यहां जातीय फैक्टर और सैफई परिवार की निष्ठा महत्वपूर्ण हो जाया करती है। यादवों का झुकाव मुलायम परिवार की तरफ अधिक होता है, क्योंकि इस क्षेत्र के लिए उन्होंने अपने जमाने में बहुत काम किया है।
पाठक और मौर्या बहाएंगे पसीना
हालांकि भाजपा ने यादव वोट बैंक में सेंधमारी के करने के लिए ही अनुजेश को मैदान में उतारा है, क्योंकि यादव विरोधी कहे जाने वाले ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय मतदाताओं को पूरी तरह अपने पाले में खींचने की बात कह रही है। इनको साधने के लिए भाजपा ने ब्रजेश पाठक को खुली छूट दे रखी है। जबकि शाक्य और पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए केशव मौर्या भी पसीना बहाएंगे। यहां पर बसपा ने भी शाक्य उम्मीदवार उतारा है, जिससे वोटों में बंटवारा तय माना जा रहा है। उन्होंने बैकवर्ड और दलित कॉम्बिनेशन बनाने के लिए यह दांव चला है। अगर बसपा का उम्मीदवार ठीक से चुनाव लड़ गया. तो सपा के वोटों में तगड़ी सेंधमारी कर सकता है। यहीं भाजपा चाह रही है कि मामला त्रिकोणीय बने तो बाजी मार लिया जाए। उधर, चंद्रशेखर ने भी दलित वोट में सेंधमारी के लिए अपना उम्मीदवार उतारा रखा है। इस चुनाव में सपा को बड़ा अंतर बनाए रखने की चुनौती है।
सपा का पुराना गढ़, बाकी सब हवा-हवाई
समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष आलोक शाक्य कहते हैं कि सपा पहले ही चुनाव जीत चुकी है। हम मार्जिन बढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्योंकि यह सपा का पुराना गढ़ है। भाजपा के उम्मीदवार का इस क्षेत्र में कोई असर नहीं है। बसपा के शाक्य उम्मीदवार उतारने पर कोई फर्क नहीं आएगा शाक्य मतदाता एकमुश्त सपा को ही वोट देंगे। चंद्रशेखर का यहां कोई असर नहीं है। ऐसे उम्मीदवार हर कोई उतार देता है। नेता जी की धरती है. उनका सम्मान सभी जाति धर्म के लोग करते हैं। भाजपा सिर्फ खोखले वादे करती है। इनका जमीन पर कोई काम नहीं है। किसान नौजवान सब परेशान हैं। तेज प्रताप यहां बड़े अंतर से चुनाव जीतेंगे।
योगी और मोदी का सहारा
भाजपा के जिला अध्यक्ष राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि भाजपा इस बार यहां चुनाव जीतने जा रही है। अनुजेश यादव 10 वर्षों से हमारी पार्टी में हैं। यहां पर विकास और अपराध मुक्त भाजपा की सरकार चल रही है। करहल माफिया और अपराध मुक्त है। यहां के लोग अमन चैन से रह रहे हैं। यहां योगी और मोदी की लोकप्रियता है। हमारा उम्मीदवार बड़े अंतर से चुनाव जीतेगा।