
एकनाथ शिंदे (सोर्स: सोशल मीडिया)
मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणामों की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री एवं विधायकों का शपथ ग्रहण भी हो चुका है। अब सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष की घोषणा होनी है तथा उसके बाद नागपुर में होने वाले शीतकालीन सत्र तक मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है। इसलिए मंत्री बनने की इच्छा रखने वाले विधायक अपने पक्ष लाम बंदी की कोशिश में पूरे सामर्थ्य के साथ जुट गए हैं। लेकिन एक अनार सौ बीमार वाली कहावत की तर्ज पर सभी को खुश करना किसी भी राजनीतिक दल या उसके नेता के लिए फिलहाल संभव नहीं लग रहा है।
सूत्रों का दावा है कि यह मामला उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए और कठीन नजर आ रहा है। क्योंकि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी, शिंदे के पांच खास नेताओं को मंत्री बनाए जाने का विरोध कर रही है। ये नेता हैं, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तानाजी सावंत, दीपक केसरकर, अब्दुल सत्तार, संजय राठोड और संजय शिरसाट। इसलिए मंत्री पद पर निर्णय के लिए डीसीएम शिंदे ने अपने विधायकों का रिपोर्ट कार्ड मंगवाया है।
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संविधान में दिए गए प्रावधानों के अनुसार, किसी भी राज्य की विधानसभा के कुल विधायकों की संख्या में से 15 फीसदी विधायकों को ही मंत्री बनने का मौका मिल सकता है। अत: नियमत: 288 विधानसभा सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में औसतन 6 से 7 विधायक पर एक मंत्री के फार्मूले के आधार पर अधिकतम 43 मंत्री बनाए जा सकते हैं। विधायकों की संख्या के आधार पर बीजेपी को 22, शिंदे की शिवसेना को अधिकतम 12 तो वहीं अजित की एनसीपी को 9 मंत्री पद मिलने तय माने जा रहे हैं।
लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 132, शिवसेना के 57 और अजित पवार की एनसीपी के 41 विधायक जीते हैं। शिंदे और अजित पवार की समस्या यह है कि उसके ज्यादातर विधायकों ने शिवसेना और एनसीपी में बगावत के दौरान उनका साथ दिया था। तब लगभग सभी लोगों को मंत्री बनाने का वादा शिंदे और अजित ने किया था।
पिछली सरकार में कुछ ही विधायकों को मंत्री बनने का मौका मिला था। बाकी बचे विधायक चाहते हैं कि इस बार उन्हें मौका मिलना चाहिए। जबकि पिछली सरकार में मंत्री रहे विधायक भी फिर से मंत्री बनने के लिए जोर लगाए हुए हैं। लेकिन शिंदे के पांच नेताओं का बीजेपी और खुद मुख्यमंत्री फडणवीस विरोध कर रहे हैं।
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सूत्रों का दावा है कि महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान शिवसेना और राकां के कई विधायकों पर बीजेपी ने भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया था। लेकिन उनमें से ज्यादातर बाद में बनीं एकनाथ शिंदे के नेतृत्ववाली महायुति सरकार में मंत्री बन गए थे। इससे बीजेपी की बहुत किरकिरी हुई थी। हालांकि महा विकास अघाड़ी सरकार के दौरान भी शिंदे गुट के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग ही रहे थे। इनमें तानाजी सावंत (एंबुलेंस घोटाला) और अब्दुल सत्तार (टीईटी घोटाला) का नाम प्रमुख रूप से लिया जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि बीते दो वर्षों में स्कूली शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर के विभाग से जुड़ी कई शिकायतें भी मंत्रालय में आती रहीं। इसी तरह मंत्री संजय राठोड पर एक महिला की खुदकुशी के मामले में गंभीर आरोप लगे थे। जबकि संजय शिरसाट को उनके बड़बोले पन का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।






