राहुल गांधी व अखिलेश यादव (सोर्स-सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश उपचुनाव के साथ ही महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं। इसीलिए अगर यूपी में कोई भी राजनीतिक दांव खेला जा रहा है तो उसका असर महाराष्ट्र की राजनीति में भी देखने को मिल रहा है। अखिलेश यूपी उपचुनाव में कांग्रेस को सपा के रहमोकरम पर रखने का दांव खेल रहे थे। सीट बंटवारे में सम्मानजनक और मनचाही सीटें न मिलने के कारण कांग्रेस ने यूपी का मैदान जरूर छोड़ दिया, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा धोबी पछाड़ दांव खेला गया कि सपा पूरी तरह से धराशायी हो गई।
ऐसे में अखिलेश यादव चाहकर भी कांग्रेस या भारत गठबंधन पर हमला नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि सपा की राजनीतिक डोर यूपी में फंसी हुई है। लोकसभा चुनाव में 37 संसदीय सीटें जीतकर सपा यूपी में नंबर वन पार्टी बन गई थी। इसके बाद ही अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से यूपी के बाहर सपा के विस्तार की रणनीति अपनाई। सपा ने महाराष्ट्र में भारत गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई थी, जिसके लिए उसने मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनाव लड़ने का चयन किया था।
सपा ने महाराष्ट्र में 32 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग शुरू की थी, उसके बाद धीरे-धीरे यह 12 और अब 5 सीटों पर आ गई, लेकिन जब कांग्रेस ने यूपी में उपचुनाव लड़ने से हाथ पीछे खींच लिए, तो सपा की भारत गठबंधन के साथ मिलकर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ने की योजना पर ग्रहण लग गया। कांग्रेस ने यूपी में सपा के लिए मैदान यूं ही नहीं छोड़ा, बल्कि इसके पीछे एक रणनीति है। कांग्रेस सिर्फ लाभार्थी बनने के बजाय सपा से उचित भागीदारी चाहती है। ऐसे में कांग्रेस ने पांच सीटों का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सपा ने गठबंधन धर्म के अनुसार सीटों पर सलाह-मशविरा नहीं किया।
बिना बातचीत किए ही प्रत्याशियों की घोषणा कर दी गई। गाजियाबाद और खैर सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ने की घोषणा कर दी गई। दोनों सीटों पर एकतरफा समीकरण कांग्रेस के अनुकूल नहीं थे, जिसके कारण उसे यह रास नहीं आया। यूपी में सपा और कांग्रेस का एक ही राजनीतिक आधार है, जिसके कारण दोनों के बीच शह-मात का खेल चल रहा है। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को ज्यादा राजनीतिक स्पेस देने के मूड में नहीं हैं, जिसके कारण उन्होंने ऐसी सीटों की पेशकश की, जिन्हें कांग्रेस अपने लिए उपयुक्त नहीं मान रही थी। ऐसे में कांग्रेस ने खुद ही आखिरी वक्त में फूलपुर सीट छोड़ने के सपा के प्रस्ताव को नजरअंदाज कर दिया।
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इसके पीछे वजह यह थी कि अगर सपा के मुज्तबा सिद्दीकी की जगह कांग्रेस के सुरेश यादव चुनाव लड़ते तो भविष्य में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता था। कांग्रेस पूरे देश में मुसलमानों की हितैषी होने का दावा कर रही है। ऐसे में वह किसी अल्पसंख्यक का टिकट काटने का कलंक अपने माथे नहीं लेना चाहती थी। इसलिए कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने का विकल्प छोड़ दिया और सपा को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। अखिलेश यादव की राजनीतिक मंशा को समझते हुए कांग्रेस ने यूपी उपचुनाव से अपने कदम जरूर पीछे खींच लिए, लेकिन अब इसकी तपिश महाराष्ट्र की राजनीति में भी महसूस की जा रही है।
अखिलेश यादव ने मुस्लिम वोटरों और भारत गठबंधन के सहारे महाराष्ट्र में सपा की राजनीतिक जमीन बढ़ाने की योजना बनाई थी, लेकिन सीट बंटवारे में उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं मिली। कांग्रेस महाराष्ट्र में सपा को सिर्फ दो सीटें देना चाहती है, वह भी वहां जहां सपा के मौजूदा विधायक हैं। यही वजह है कि सपा ने जिन पांच सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की थी, उनमें से तीन सीटों पर कांग्रेस और एनसीपी ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने रविवार को कहा कि हम अनदेखी झेलने वाले लोग हैं।
राजनीति में त्याग के लिए कोई जगह नहीं है। महाराष्ट्र चुनाव के संबंध में दिए गए उनके इस बयान को कांग्रेस से गठबंधन से भी जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि सपा ने महाराष्ट्र में पांच सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं और भारत गठबंधन के तहत 12 सीटों की मांग कर रही थी। कांग्रेस अपने कोटे से सीटें देने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे फहद अहमद शरद पवार की एनसीपी में शामिल होकर अणुशक्ति नगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि नवाब मलिक ने अबू आसिम आजमी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।
इस तरह सपा के लिए सियासी तनाव बढ़ गया है। मजबूरी के चलते सपा कांग्रेस पर खुलकर हमला नहीं कर पा रही है। यूपी उपचुनाव की राजनीतिक मजबूरी के चलते ही सपा कांग्रेस पर खुलकर हमला नहीं कर पा रही है। अखिलेश यादव ने कहा कि हमारी पहली कोशिश गठबंधन में बने रहने की होगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं होती। अगर वे हमें गठबंधन में नहीं रखना चाहते तो हम वहीं चुनाव लड़ेंगे जहां हमारी पार्टी को वोट मिलेंगे या संगठन पहले से काम कर रहा है ताकि गठबंधन को नुकसान न हो।
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