कभी दिल्ली की राजनीति में एक मज़बूत ताक़त रही कांग्रेस पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनावों में अपना खाता तक नहीं खोल पाई। हालांकि, इस बार पार्टी पूरी दमखम के साथ दिल्ली के चुनावी लड़ाई में उतरी है।
कांग्रेस
कभी दिल्ली की राजनीति में एक मज़बूत ताक़त रही कांग्रेस पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनावों में अपना खाता तक नहीं खोल पाई।
2013 में नवगठित आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले कांग्रेस ने लगातार पंद्रह साल दिल्ली पर शासन किया।
जब कांग्रेस दिल्ली में अपने शीर्ष पर थी तब उसके पास 40 फ़ीसदी तक का वोट शेयर था। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सिर्फ़ 4.26 प्रतिशत ही वोट हासिल कर सकी।
इससे पहले साल 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 9.7 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। कांग्रेस 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन से वजूद में आई आम आदमी पार्टी कांग्रेस की राजनीतिक ताक़त 'ख़त्म' कर सत्ता तक पहुंची।
आम आदमी पार्टी की फ्री बिजली, फ्री पानी, शिक्षा में सुधार और स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने की योजनाओं ने ग़रीब और मध्यमवर्ग के मतदाताओं को आकर्षित किया।
अब एक बार फिर दिल्ली में चुनाव हैं। इंडिया गठबंधन के तहत एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी अब अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं और एक दूसरे पर आक्रामक हैं।
कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि वो अपने पुराने मतदाता वर्ग को वापस अपनी तरफ़ आकर्षित करे।
विश्लेषक मानते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो इसकी सीधी क़ीमत आम आदमी पार्टी को चुकानी पड़ सकती है।