RBI के निर्वतमान गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन मीडिया को किया संबोधित
मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निवर्तमान गवर्नर शक्तिकांत दास ने मंगलवार को कहा कि आर्थिक वृद्धि में नरमी के लिए सिर्फ रेपो रेट नहीं, बल्कि कई अन्य कारक भी जिम्मेदार हैं। केंद्रीय बैंक प्रमुख के रूप में अपने कार्यकाल के आखिरी दिन पत्रकारों से बातचीत में शक्तिकांत दास ने कहा कि वृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन को बहाल करना केंद्रीय बैंक के समक्ष सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। दास ने अपने छह साल के कार्यकाल में कोविड-19 वैश्विक महामारी के अलावा यूक्रेन तथा पश्चिम एशिया में युद्ध जैसी प्रमुख भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच अर्थव्यवस्था को संभाला है। दास की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने लगातार 11 बार से रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया है।
निवर्तमान गवर्नर ने पत्रकारों से कहा कि लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों तथा भविष्य के परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति को जितना संभव हो सके उतना उपयुक्त बनाने का प्रयास किया गया है। ब्याज दर निर्धारण के मुद्दे को आसान न मानने का लोगों से आग्रह करते हुए दास ने कहा कि मैं इसे इस प्रकार देखता हूं कि वृद्धि कई कारकों से प्रभावित होती है केवल रेपो रेट से नहीं। उन्होंने आगे कहा कि एमपीसी और आरबीआई के भीतर मुझे लगता है कि हम इस बात से आश्वस्त हैं कि हमने जो किया है वह इन परिस्थितियों में उपलब्ध विकल्पों में से सबसे उचित था।
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केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल ने हाल के दिनों में नीतिगत दरों में कमी करने की सार्वजनिक तौर वकालत की थी। चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर की तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आने के बाद रेपो रेट में कटौती की मांग और तेज हो गई है। दास ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था जुझारू व मजबूत है तथा इसमें वैश्विक प्रभावों से उचित तरीके से निपटने की क्षमता है। निवर्तमान गवर्नर ने कहा कि उनके उत्तराधिकारी के पास व्यापक अनुभव है और वह संस्थान के लिए सर्वोत्तम काम करेंगे। दास ने कहा कि उन्हें एमपीसी में बड़े बदलावों में कोई समस्या नहीं दिखती, जिसमें जल्द ही छह में से पांच सदस्य ऐसे होंगे जिनके पास दर निर्धारण का थोड़ा अनुभव होगा।
शक्तिकांत दास से उनके अधूरे एजेंडा पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि आरबीआई जैसी बड़ी संस्था में हमेशा काम जारी रहता है और हमेशा ऐसे कार्य होते हैं जिन्हें पूरा किए जाने की जरूरत होती है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि परिवर्तनकारी यूनिफाइड लोन इंटरफेस (यूएलआई) को राष्ट्रीय स्तर पर पेश किया जाएगा और केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) को आगे बढ़ाया जाएगा जो मुद्रा का भविष्य है। अपने कार्यकाल के दौरान पेश हुईं कुछ चुनौतियों पर दास ने कहा कि हमेशा यह सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया गया कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किसी संस्थान को बचाने या किसी समस्याग्रस्त संस्थान का अच्छा प्रदर्शन वाले संस्थान के साथ विलय करने में न किया जाए।
यस बैंक के मामले का हवाला देते हुए दास ने कहा कि आरबीआई यह सुनिश्चित करने में कामयाब रहा कि एसबीआई नीत ऋणदाताओं के संघ ने खराब परिसंपत्तियों से जूझ रहे निजी क्षेत्र के इस ऋणदाता को बचाने के लिए आवश्यक पूंजी दी। दास ने कहा कि यस बैंक संकट के परिणामस्वरूप आरबीआई को निगरानी बढ़ाने की सीख मिली, जिसे आज काफी हद तक बढ़ाया गया है। आरबीआई द्वारा अपने अधीन विनियमित संस्थाओं पर कारोबारी प्रतिबंध लगाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर दास ने कहा कि संस्थाओं के साथ बातचीत कर ऐसे परिणामों से बचने के लिए हमेशा प्रयास किए जाते हैं और कभी-कभी किसी निर्णय तक पहुंचने में एक वर्ष तक का समय लग जाता है।
शाक्तिकांत दास ने आगे कहा कि ऐसे प्रतिबंध लागू होने के बाद आरबीआई को यदि दिखता है कि संबंधित इकाई अनुपालन का प्रयास कर रही है तो वह ऐसे आदेशों को आगे बढ़ाना अनावश्यक मानता है और इनमें ढील दे सकता है। उन्होंने एक गैर-बैंक ऋणदाता के मामले का हवाला दिया जहां उसने दो महीने के भीतर प्रतिबंध हटा लिए थे। दास ने कहा कि साइबर सुरक्षा पर भी भविष्य में पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता होगी। हालांकि, केंद्रीय बैंक द्वारा वित्तीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर बहुत कठोर होने की धारणा गलत है।