इंश्योरेंस सेक्टर (सौ. सोशल मीडिया )
नई दिल्ली : बैंक अकाउंट, एफडी, म्युचुअल फंड, स्टॉक्स, इंश्योरेंस जैसे तमाम फाइनेंशियल अकाउंट्स के लिए नॉमिनी बनाना बेहद जरूरी है। जब भी किसी अकाउंटहोल्डर्स या पॉलिसीहोल्डर्स की मौत होती है, तो ऐसी स्थिति में उसके अकाउंट में जमा पैसे, उसके द्वारा बनाए गए नॉमिनी को दिए जाते हैं।
इंश्योरेंस पॉलिसी में नॉमिनी से जुड़े केस में कर्नाटक के हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि पॉलिसीहोल्डर्स के कानूनी उत्तराधिकारी दावा करते हैं, तो इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए बनाए गए नॉमिनी का इंश्योरेंस लाभ का पूरा अधिकार नहीं रह जाएगा।
कर्नाटक के हाई कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि नॉमिनी प्रावधान से संबंधित इंश्योरेंस एक्ट, 1938 के सेक्शन 39 हिंदू उत्तराधिकार एक्ट, 1956 जैसे पर्सनल उत्तराधिकार कानूनों पर असर नहीं करती है। जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े ने नीलव्वा उर्फ नीलम्मा बनाम चंद्रव्वा उर्फ चंद्रकला उर्फ हेमा और बाकियों के मामले में ये फैसला सुनाया है।
इन पक्षों के बीच इंश्योरेंस क्लेम के लिए सही दावेदारों को लेकर विवाद चल रहा था। जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े ने अपने फैसले में कहा है कि इंश्योरेंस पॉलिसी में नॉमिनेटेड व्यक्ति को इंश्योरेंस के फायदे तभी मिल सकते है जब कानूनी उत्तराधिकारी उनका दावा न करें। यदि कोई कानूनी उत्तराधिकारी अपने अधिकार का दावा करता है तो नॉमिनेटेड व्यक्ति के दावे को पर्सनल उत्तराधिकार कानूनों के अधीन होना चाहिए।
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इस मामले में शामिल एक इंसान ने अपनी शादी से पहले 2 अलग-अलग इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदी थी। व्यक्ति ने इन दोनों पॉलिसी में केवल अपनी मां को नॉमिनी बनाया था। व्यक्ति ने अपनी शादी और बच्चे के जन्म होने के बाद भी नॉमिनी की जानकारी में कोई बदलाव नहीं किया था। साल 2019 में उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के बाद उसकी मां और पत्नी के बीच इंश्योरेंस की राशि के भुगतान को लेकर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। कर्नाटक के हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया है कि मृतक व्यक्ति की मां, पत्नी और बच्चे इंश्योरेंस बेनिफिट्स का एक तिहाई हिस्सा मिलेगा।