हाई कोर्ट (सौजन्य-सोशल मीडिया)
High Court: महाराष्ट्र कृषि उपज विपणन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1963 में संशोधन से जुड़े मामले में बार-बार समय प्रदान किए जाने के बावजूद जवाब दाखिल करने में विफल रहने पर हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए जमकर फटकार लगाई। न्यायाधीश अनिल किल्लोर और न्यायाधीश रजनीश व्यास ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार को जवाब देने के लिए 2 सप्ताह का अंतिम अवसर तो दिया, साथ ही तब तक के लिए मामले में अंतरिम रोक लगा दी।
उल्लेखनीय है कि कृषि उत्पन्न बाजार समिति के अध्यक्ष अहमद करीम शेख की ओर से रिट याचिका और भगवान घोडमारे की ओर से जनहित याचिका दायर की गई। हाई कोर्ट की ओर से शुक्रवार को दोनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की गई।
सुनवाई शुरू होने से पहले ही राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सहायक सरकारी वकील एन।एस। राव ने हलफनामा मंजूरी के लिए सरकार को भेजे जाने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हलफनामा तैयार है किंतु संबंधित के हस्ताक्षर होने हैं। उसके आते ही हाई कोर्ट में इसे दायर किया जाएगा।
इसके लिए एक बार पुन: सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध कोर्ट से किया गया। इस पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार की ओर से लगातार समय मांगा जा रहा है जबकि पिछली सुनवाई में ही कोर्ट ने इसे लेकर गंभीरता दिखाई थी। इसके बावजूद समय मांगा जा रहा है। ऐसे में सरकार इस मुद्दे को लेकर गंभीर दिखाई नहीं दे रही है।
सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष की ओर से फिर समय मांगे जाने का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ए. एम. घारे ने कहा कि 9वीं बार सरकार की ओर से समय मांगा जा रहा है। कोर्ट ने भी कहा कि 6 अगस्त, 2025 के आदेश में मामले की गंभीरता का उल्लेख करने के बाद भी राज्य सरकार ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया। अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि सरकार को 13 अगस्त, 19 अगस्त और 12 सितंबर को जवाब दाखिल करने के मौके दिए गए थे।
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इसके बाद 16 सितंबर को अंतिम अवसर दिए जाने के बावजूद 25 और 29 सितंबर को भी जवाब दाखिल नहीं किया गया। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि इस देरी के बीच समिति अधिनियम में संशोधन के साथ आगे बढ़ सकती है। इन परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने राज्य सरकार को 2 सप्ताह का समय देते हुए अंतरिम रोक का आदेश पारित किया। जनहित याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता हरीश डांगरे ने पैरवी की।