मुंबई: इस समय पड़ रही भीषण गर्मी से हर कोई बेहाल है और मानसून का इंतजार कर रहा है कि कब बादल बरसेंगे, लेकिन तेल-गैस (Oil & Gas) की आसमान छूती महंगाई (High Inflation) से शेयर बाजार (Stock Market) में पहले ही मंदी के बादल छा गए हैं। तेजड़ियों (Bulls) की पकड़ ढ़ीली हो रही है और बाजार मंदड़ियों (Bears) की गिरफ्त में आता जा रहा है। वैश्विक बाजारों के साथ भारतीय बाजार में गिरावट का क्रम तो रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के साथ ही शुरू हो गया था और अब मंदी के दौर में तब्दील हो गया है। युद्ध लंबा खिंचने और इसके कारण क्रूड ऑयल, नैचुरल गैस, कुकिंग ऑयल और अन्य कमोडिटीज की शॉर्ट सप्लाई के चलते बेकाबू होती कीमतों यानी हाई इन्फलेशन को कंट्रोल करने के लिए बड़े देशों के केंद्रीय बैंक (Central Banks) अपनी ब्याज दरों (Interest Rates) में तीव्र वृद्धि करने लगे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 4 साल बाद रेपो रेट (Repo Rate) 0.40% बढ़ाकर 4.40% तथा सीआरआर (CRR) 0.50% बढ़ाकर 4.50% कर दी है। जबकि अमेरिका के फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) ने अपनी ब्याज दर 0.50% बढ़ाकर 1% कर दी है। यह अमेरिका में इस साल लगातार दूसरी वृद्धि है। साथ ही फेडरल रिजर्व ने आगे भी तेजी से वृद्धि करने का संकेत दिया है। इसी कारण अमेरिकी शेयर बाजार विगत 12 महीनों के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England) ने तो ब्याज दर बढ़ाते हुए ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में निगेटिव ग्रोथ की चेतावनी देकर वैश्विक निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है। ब्रिटेन में कई दशकों बाद महंगाई दर 10% के पार हो गयी है। यही हाल यूरोप के अन्य देशों का है। भारत में विदेशी निवेशकों (FPI) की भारी बिकवाली के चलते अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के मुकाबले रुपया (Rupee) 77 के पार हो गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मंहगाई ब्याज दरों में वृद्धि से कंट्रोल होना मुश्किल है, क्योंकि यह वार (युद्ध) के कारण आपूर्ति घटने से बढ़ रही है। वार खत्म होने पर ही तेल-गैस कीमतें नीचे आने की उम्मीद होगी। वार कब खत्म होगा, यह किसी को नहीं पता। बहरहाल शेयर बाजार में अवश्य विगत दो वर्षों से जारी तेजी का दौर खत्म होकर मंदी का दौर शुरू हो गया है। हालांकि इंडियन इकोनॉमी (Indian Economy) में हाई ग्रोथ, बढ़ता टैक्स कलेक्शन, बढ़ता एक्सपोर्ट, कार्पोरेट इंडिया की बढ़ती कमाई जैसे कई पॉजिटिव फैक्टर होने से भारतीय बाजार में 5 से 10% से अधिक मंदी की आशंका नहीं दिख रही है, लेकिन ज्यादा तेजी की उम्मीद भी नहीं है। ऐसे में निवेशकों को ‘वेट एंड वाच’ की पॉलिसी अपनाते हुए काफी सतर्क रहने की जरूरत है। अपने उच्च स्तरों से विगत 4 महीनों में सेंसेक्स व निफ्टी में जहां करीब 12% की गिरावट आई है, वहीं बीएसई मिडकैप में 16% और स्मालकैप में 13% की गिरावट आ चुकी है। बीते शुक्रवार को सेंसेक्स 54,835 अंक और निफ्टी 16,411 अंक पर बंद हुआ। गिरावट के बाद IT, बैंकिंग, शुगर-इथेनॉल, पावर-सोलर एनर्जी, ऑयल-गैस, सीमेंट सेक्टर के शेयर आकर्षक दिखने लगे हैं।
आईडीबीआई म्यूचुअल फंड (IDBI Mutual Fund) के मुख्य निवेश अधिकारी आलोक रंजन (Alok Ranjan) का कहना है कि रूस-यूक्रेन वार लंबा खिंचने, रिकॉर्ड महंगाई तथा ग्रोथ कम होने की चिंता में वैश्विक बाजारों की स्थिति खराब हो गयी है। भारत में भी अचानक उम्मीद से थोड़ी ज्यादा ब्याज दर वृद्धि किए जाने से निवेशकों की चिंता बढ़ी है और इससे गिरावट अधिक आ रही है। क्रूड ऑयल फिर 110 डॉलर के ऊपर पहुंच गया है। मैक्रो इकोनॉमिक आउटलुक कमजोर हो रहे हैं। ऐसे में बाजार में उतार-चढ़ाव के साथ 5 से 10% और गिरावट की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। एक पॉजिटिव पहलू यह है कि इस करेक्शन में बहुत से सेक्टर, जो हाई वैल्यूएशन पर पहुंच गए थे, अब उचित मूल्यांकन (वैल्यूएशन) की ओर आने लगे हैं।
आलोक रंजन ने कहा कि मौजूदा हालात में रिटेल इन्वेस्टर (Retail Investors) के लिए यही सलाह है कि जो म्यूचुअल फंड इन्वेस्टर एसआईपी (SIP) के माध्यम से नियमित निवेश कर रहे हैं, उन्हें निवेश जारी रखना चाहिए, ताकि उतार-चढ़ाव का लाभ मिल सके। और जो इन्वेस्टर एकमुश्त निवेश करना चाहते हैं, उन्हें गिरते मूल्यों पर चरणबद्ध तरीके से निवेश शुरू कर देना चाहिए। हालांकि इन्वेस्टर्स को यह ध्यान में रखना चाहिए कि विगत दो वर्षों में भारी तेजी के कारण जितना असाधारण उच्च रिटर्न (सेंसेक्स-निफ्टी में 100% से अधिक) मिला, उतना रिटर्न इस साल तो मिलना मुश्किल है, लेकिन इन्वेस्टर मौजूदा स्तरों पर अपने नए निवेश पर अगले दो-तीन वर्षों में अवश्य कुछ अच्छे रिटर्न की उम्मीद रख सकते हैं, क्योंकि तमाम चुनौतियों के बावजूद ‘इंडिया ग्रोथ स्टोरी’ कायम है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज (Motilal Oswal Financial Services Ltd.) के रिटेल रिसर्च हैड सिद्धार्थ खेमका (Siddhartha Khemka) का कहना है कि आज सबसे बड़ी चिंता बढ़ती महंगाई (इन्फलेशन) है। यदि सिर्फ मुद्रा स्फीति के कारण महंगाई बढ़ती है तो ब्याज दर बढ़ाकर उसे नियंत्रित किया जा सकता है, परंतु वर्तमान में जो विश्वव्यापी महंगाई बढ़ रही है, उसका मुख्य कारण रूस-यूक्रेन वार है। वार के कारण तेल-गैस और अन्य कमोडिटीज की सप्लाई प्रभावित हो रही है और कीमतें बेकाबू हो रही हैं। और तेल-गैस ऐसी कमोडिटी हैं, जिनके महंगे होने से अधिकांश देशों की ग्रोथ पर निगेटिव असर होता है। वर्तमान में निवेशकों की यही सबसे बड़ी चिंता है। इन्फलेशन कंट्रोल करने के लिए सभी केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, लेकिन यह ग्लोबल इन्फलेशन की समस्या तब तक दूर नहीं होगी, जब तक वार खत्म नहीं होता है और यह कब खत्म होगा, कुछ कहना कठिन है। शेयर बाजार के लिए तो महंगाई और ब्याज दर में वृद्धि, दोनों ही निगेटिव है। क्योंकि इससे कंपनियों के लाभ मार्जिन पर प्रेशर आता है।
सिद्धार्थ खेमका ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 के लिए हमारा अनुमान था कि निफ्टी-50 (Nifty 50) कंपनियों की अर्निंग ग्रोथ (Earning Growth) 19% होगी, लेकिन अब महंगाई बढ़ने और ब्याज दर में वृद्धि से ग्रोथ घटने की आशंका पैदा हो गयी है, लेकिन बीती तिमाही (जनवरी-मार्च 2022) के अभी तक आए अधिकांश कंपनियों के रिजल्ट्स अच्छे हैं। इसी वजह से निचले स्तरों पर बाजार को सपोर्ट मिल रहा है। कुल मिलाकर युद्ध जारी रहने तक बाजार में उतार-चढ़ाव के साथ मंदी का दबाव बना रह सकता है। हालांकि निफ्टी में 4-5% से ज्यादा गिरावट की आशंका नहीं दिख रही है। ऐसे में रिटेल इन्वेस्टर के लिए यही सलाह है कि लॉन्ग टर्म नजरिए के साथ एसआईपी के माध्यम से या गिरते हुए मूल्यों पर ऑयल-गैस, पावर, बैंकिंग, आईटी, सीमेंट, रियल्टी सेक्टर के डेब्ट फ्री लार्जकैप स्टॉक में निवेश करना चाहिए, क्योंकि खराब समय में किया गया निवेश ही अच्छे समय में बढ़िया रिटर्न प्रदान करता है।
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