
आईबीसी संशोधन विधेयक 2025, (डिजाइन फोटो/ नवभारत)
IBC Amendment Bill 2025: देश के दिवाला और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code) में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। 25 नवंबर, 2025 से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान इसे लोकसभा में पेश करने की कवायद चल रही है। 2016 में लागू होने के बाद से अब तक IBC में कई बदलाव किए जा चुके हैं, लेकिन इस बार का प्रस्तावित विधेयक अब तक का सबसे बड़ा संशोधन माना जा रहा है।
2016 में IBC लागू होने के बाद इसमें कई चरणों में संशोधन किए गए हैं, लेकिन इस बार प्रस्तावित विधेयक को अब तक का सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है। इंडस्ट्री और कानून विशेषज्ञों का मानना है कि ये सुधार ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के वास्तविक उद्देश्य को जमीनी स्तर पर उतारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
खासतौर पर वह प्रावधान, जो किसी कंपनी के प्रमोटर या उसके ब्लड रिलेशन को दिवालिया प्रक्रिया (Insolvency Process) में भाग लेने से रोकता है, यानी सेक्शन 29A। यह संशोधन के केंद्र में है। माना जा रहा है कि आगामी विधेयक इस प्रावधान में बड़े बदलाव ला सकता है, जिससे रिजॉल्यूशन प्रोसेस और अधिक लचीली और व्यावहारिक बन सकती है।
IBC का सेक्शन 29A एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो दिवालिया कंपनी के समाधान (resolution) प्रक्रिया में भाग लेने के लिए कुछ व्यक्तियों या संस्थाओं को अयोग्य घोषित करता है। यह उन लोगों को रोकता है जो दिवालियापन के लिए जिम्मेदार थे, जैसे कि कंपनी के प्रमोटर या जानबूझकर लोन चुकाने वाले, ताकि वे खुद कंपनी पर फिर से नियंत्रण न पा लें। इसका मुख्य उद्देश्य लेनदारों के हितों की रक्षा करना और समाधान प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखना है।
सरकार का उद्देश्य यह था कि जिस व्यक्ति की लापरवाही या गलत प्रबंधन से कोई कंपनी डूब गई, वह दोबारा उसी कंपनी का मालिक न बन पाए। इसीलिए सेक्शन 29A लागू किया गया था। लेकिन उद्योग जगत का कहना है कि यह प्रावधान बेहद व्यापक है। इसकी वजह से ऐसे लोग भी दिवालिया प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं जिनका कंपनी के संचालन, वित्तीय निर्णयों या प्रबंधन से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। वे सिर्फ पारिवारिक या ‘ब्लड रिलेशन’ होने की वजह से अयोग्य घोषित कर दिए जाते हैं।
बैजयंत पांडा की अध्यक्षता वाली सेलेक्ट कमेटी IBC में संशोधन के प्रस्ताव पर फिलहाल विचार कर रही है। कमेटी के सामने अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स अपनी राय प्रस्तुत कर रहे हैं। कमेटी तक पहुंची प्रमुख सिफारिशों में सबसे अहम यह है कि सेक्शन 29A के ‘ब्लड रिलेशन’ से जुड़े हिस्से को पुनर्परिभाषित किया जाए और ‘रिलेटेड पार्टी’ की परिभाषा को केवल व्यावसायिक संबंधों तक सीमित किया जाए। उद्योग जगत का तर्क है कि किसी भी व्यक्ति की बोली को तभी रोका जाना चाहिए जब उसके निवेश के स्रोत में कंपनी के प्रमोटर के फंड का स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिंक पाया जाए।
एक्सपर्ट्स का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक पुराने आदेश में स्पष्ट किया था कि ‘रिलेटेड पार्टी’ की परिभाषा का निर्धारण पारिवारिक रिश्तों के आधार पर नहीं, बल्कि वास्तविक व्यावसायिक संबंधों के आधार पर होना चाहिए। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि IBC Amendment Bill 2025 में सेक्शन 29A को इसी दिशा में संशोधित किया जाता है, तो यह न केवल तार्किक रूप से उचित होगा बल्कि न्यायिक रूप से भी पूरी तरह संगत माना जाएगा। इससे इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया को अधिक व्यवहारिक और निष्पक्ष बनाने में मदद मिलेगी।
अगर सरकार की ओर से इस संशोधन को मंजूरी मिलती है तो, तो देश के कई बड़े कॉरपोरेट हाउस अपने ‘ब्लड रिलेशन’ से जुड़ी कंपनियों के IBC मामलों में भाग ले सकेंगे। इससे दिवालिया कंपनियों के लिए समाधान प्रक्रिया में तेज आ सकती है, क्योंकि संभावित निवेशकों की संख्या बढ़ेगी और प्रतिस्पर्धा भी मजबूत होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल IBC की सफलता दर में सुधार होगा, बल्कि ‘इज ऑफ डूइंग’ बिजनेस को भी वास्तविक अर्थों में मजबूती मिलेगी।
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2016 में लागू होने के बाद से अब तक IBC में छह बार महत्वपूर्ण संशोधन किए जा चुके हैं। हर बार इसका मुख्य उद्देश्य दिवालिया प्रक्रिया को तेज, पारदर्शी और निवेशक-अनुकूल बनाना रहा है। हालांकि सेक्शन 29A जैसा कठोर प्रावधान बदलते कारोबारी माहौल और आज के व्यवसायिक इकोसिस्टम के अनुरूप अब पहले की तरह प्रभावी नहीं माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह नियम अपने वर्तमान रूप में नए आर्थिक ढांचे और आधुनिक कॉरपोरेट संरचनाओं के साथ मेल नहीं खाता, इसलिए इसे अपडेट किए जाने की आवश्यकता है।






