
(प्रतीकात्मक तस्वीर, सोर्स- एआई)
Income Tax Rule on Gifts: भारतीय संस्कृति में रिश्तों और उपहारों का अटूट संबंध है। त्योहारों, शादियों या विशेष अवसरों पर परिवार के सदस्यों के बीच तोहफों का लेन-देन आम बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आयकर विभाग (Income Tax Department) की नजर में ये तोहफे केवल प्यार का इजहार नहीं, बल्कि टैक्स का गणित भी हैं? फिलहाल, सोशल मीडिया और टैक्स विशेषज्ञों के बीच एक विसंगति को लेकर चर्चा तेज है। बहू को दिया गया तोहफा तो टैक्स-फ्री है, लेकिन वही तोहफा अगर बहू अपने सास-ससुर को दे, तो वह टैक्स के दायरे में आ सकता है।
आयकर अधिनियम की धारा 56(2) के तहत, यदि किसी व्यक्ति को एक वित्तीय वर्ष में 50,000 रुपये से अधिक का उपहार मिलता है, तो उसे ‘अन्य स्रोतों से आय’ मानकर उस पर टैक्स देना पड़ता है। हालांकि, सरकार ने ‘रिश्तेदारों’ से मिलने वाले उपहारों को इस नियम से पूरी तरह छूट दी है। इस नियम की विसंगति यहां तक आती है कि आयकर कानून के अनुसार ‘रिश्तेदार’ की परिभाषा में कौन शामिल है।
कानून के मुताबिक सास-ससुर के लिए बहू एक ‘रिश्तेदार’ है। इसलिए, यदि सास-ससुर अपनी बहू को ज्वैलरी, कैश या प्रॉपर्टी गिफ्ट करते हैं, तो बहू को उस पर कोई टैक्स नहीं देना होता। वहीं, बहू के लिए सास-ससुर के केस में असली पेच फंसता है। कई कानूनी व्याख्याओं और पुराने नियमों के कारण, जब बहू अपने सास-ससुर को महंगा तोहफा देती है, तो कुछ मामलों में उसे ‘रिश्तेदार’ की श्रेणी में उस तरह से नहीं रखा गया है जैसा कि दामाद या बहू को रखा जाता है।
हाल ही में कई टैक्स विशेषज्ञों और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ने सरकार से इस विसंगति को दूर करने की मांग की है। इसके पीछे तीन मुख्य तर्क हैं:
1. लैंगिक असमानता (Gender Neutrality): विशेषज्ञों का कहना है कि जब कानून बहू को सास-ससुर से उपहार लेने पर छूट देता है, तो वही अधिकार सास-ससुर को भी मिलना चाहिए। रिश्ता द्विपक्षीय (Reciprocal) होता है, ऐसे में टैक्स नियम एकतरफा नहीं होने चाहिए।
2. पारिवारिक संरचना में बदलाव: आज के दौर में बहुएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं। वे अपने सास-ससुर का ख्याल रखने या उनकी आर्थिक मदद करने के लिए उन्हें संपत्ति या कीमती उपहार देना चाहती हैं। वर्तमान नियम इस तरह के लेन-देन को हतोत्साहित करते हैं।
3. कानूनी अस्पष्टता और मुकदमेबाजी: ‘रिश्तेदार’ की परिभाषा को लेकर अलग-अलग ट्रिब्यूनल के अलग-अलग फैसले आए हैं। इस अस्पष्टता के कारण आयकर विभाग और करदाताओं के बीच कानूनी विवाद बढ़ते हैं। एक स्पष्ट कानून इस जटिलता को खत्म कर सकता है।
भले ही उपहार टैक्स-फ्री हो जाए, लेकिन एक और नियम है जिसे ‘क्लबिंग प्रोविजन’ कहते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि ससुर ने बहू को 10 लाख रुपये गिफ्ट किए और बहू ने उस पैसे को एफडी (FD) करा दिया, तो उस एफडी पर मिलने वाला ब्याज बहू की आय नहीं, बल्कि ससुर की आय में जोड़ दिया जाएगा और ससुर को उस पर टैक्स देना होगा। लोग चाहते हैं कि सरकार इन नियमों को भी सरल बनाए।
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आगामी बजट में यह उम्मीद की जा रही है कि ‘रिश्तेदार’ की परिभाषा को अधिक समावेशी और तार्किक बनाया जाए। यदि बहू द्वारा सास-ससुर को दिए जाने वाले उपहारों को स्पष्ट रूप से टैक्स-फ्री कर दिया जाता है, तो इससे न केवल मध्यम वर्गीय परिवारों को राहत मिलेगी, बल्कि पारिवारिक निवेश और संपत्ति के हस्तांतरण में भी पारदर्शिता आएगी।






