हरि नारायण सिंह, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का रंग चढ़ चुका है और उम्मीदवारों की सूची सामने आने के साथ ही सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। इस बार के चुनाव में जहां कई नए चेहरे पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो दशकों से चुनावी मैदान में डटे हुए हैं। इन्हीं में एक नाम है जदयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व शिक्षा मंत्री हरि नारायण सिंह का, जो इस बार 13वीं बार चुनावी रणभूमि में उतर रहे हैं। वह नालंदा जिले की हरनौत विधानसभा सीट से मैदान में हैं। यह वही सीट है, जहां से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी विधायक रह चुके हैं।
हरि नारायण सिंह का राजनीतिक सफर 1977 में शुरू हुआ, जब उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चंडी विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा था। तब से लेकर अब तक वह सात अलग-अलग राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ चुके हैं और नौ बार जीत हासिल कर चुके हैं। यह आंकड़ा उन्हें बिहार की राजनीति के सबसे अनुभवी और जुझारू नेताओं में शुमार करता है।
हरनौत सीट से उनका चुनाव लड़ना इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि यह क्षेत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गढ़ रहा है। ऐसे में हरि नारायण सिंह की उम्मीदवारी को जदयू की रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है, जो अनुभव और संगठनात्मक मजबूती को प्राथमिकता देने की ओर इशारा करता है।
हरि नारायण सिंह की राजनीतिक यात्रा में पार्टी बदलने की प्रवृत्ति भी चर्चा का विषय रही है। सात अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ना यह दर्शाता है कि उन्होंने समय-समय पर राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार अपने रास्ते बदले, लेकिन जनता के बीच उनकी पकड़ बनी रही। यह भी उल्लेखनीय है कि उन्होंने जिन नौ चुनावों में जीत दर्ज की, उनमें कई बार उन्होंने कठिन मुकाबलों में विरोधियों को मात दी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हरि नारायण सिंह जैसे नेताओं की उपस्थिति चुनावी परिदृश्य को स्थायित्व देती है। उनका अनुभव, संगठनात्मक पकड़ और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं से संवाद उन्हें अन्य उम्मीदवारों से अलग बनाता है। हालांकि, बदलते राजनीतिक समीकरणों और युवाओं की बढ़ती भागीदारी के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या उनका अनुभव इस बार भी जीत दिला पाएगा।
हरनौत सीट पर मुकाबला कड़ा होने की संभावना है। जहां एक ओर हरि नारायण सिंह जैसे अनुभवी नेता मैदान में हैं, वहीं दूसरी ओर युवा उम्मीदवार भी अपनी नई सोच और ऊर्जा के साथ चुनौती पेश कर रहे हैं। यह चुनाव केवल सीट जीतने का नहीं, बल्कि अनुभव और इनोवेशन के बीच संतुलन साधने का भी प्रतीक बन गया है।
इस बार के चुनाव में दिलचस्प बात यह है कि मैदान में 25 साल से लेकर 80 साल तक के उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं। युवा जोश और बुजुर्ग अनुभव के इस टकराव में कौन बाजी मारेगा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, लेकिन इतना तय है कि मुकाबला बेहद रोचक होने वाला है। सबसे युवा उम्मीदवार के रूप में 25 वर्ष तीन माह की मैथिली ठाकुर अब तक सबसे कम उम्र की प्रत्याशी के रूप में सामने आई हैं, जबकि प्रेम कुमार जैसे दिग्गज नेता भाजपा से लगातार नौवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं और अब तक अजेय रहे हैं।
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बिहार की राजनीति में जहां जातीय समीकरण और दलगत निष्ठा अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं इस बार मतदाता भी बदलाव और विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ऐसे में हरि नारायण सिंह की 13वीं पारी कितनी सफल होती है, यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि उनका नाम इस चुनावी समर में सबसे अनुभवी योद्धाओं में शुमार रहेगा।