गया एयरपोर्ट के IATA कोड 'GAY' को लेकर राज्यसभा में चर्चा हुई
Gaya Airport Code Controversy: गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का तीन अक्षरों वाला IATA कोड ‘GAY’ एक बार फिर सुर्खियों में है। भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ. भीम सिंह ने संसद में यह मुद्दा उठाया और कहा कि यह कोड सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अपमानजनक और असहज महसूस कराया जाता है। सिंह ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वो इस कोड को कोई अधिक सम्मानजनक और उपयुक्त कोड से बदलने पर विचार कर रही है। सांसद की इस मांग के बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई है, जिसमें LGBTQ समुदाय और स्थानीय लोगों के रुख भी सामने आए हैं।
नागर विमानन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने राज्यसभा में लिखित जवाब देते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे तीन-अक्षर के कोड अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (IATA) द्वारा तय किए जाते हैं। ये कोड प्रायः उस स्थान के नाम के पहले तीन अक्षरों के आधार पर बनाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि गया एयरपोर्ट का ‘GAY’ कोड भी इसी मानक के अनुसार बना है और यह 2011 से प्रचलन में है। मंत्री मोहोल ने यह भी बताया कि एक बार कोड जारी हो जाने के बाद उसे बदलना काफी मुश्किल होता है और केवल तब बदला जाता है जब कोई कोड विमान सुरक्षा के लिहाज से खतरा बन जाए। यानी, असाधारण परिस्थितियों के अलावा कोड में बदलाव संभव नहीं है।
गया का कोड बदलने की मांग पहली बार नहीं आई है। एयर इंडिया सहित कई संस्थाएं और शहरवासी पहले भी मंत्रालय और एयरपोर्ट अथॉरिटी से अनुरोध कर चुके हैं, लेकिन हर बार नियमों का हवाला देकर ऐसी मांग खारिज कर दी गई। मंत्री मोहोल ने भी हवाला दिया कि IATA रिजोल्यूशन 763 के तहत कोड को स्थायी माना जाता है और सिर्फ विशिष्ट परिस्थितियों में बदलाव होता है]। भाजपा सांसद डॉ. भीम सिंह के अनुसार, धार्मिक नगरी के साथ यह संबद्धता अपमानजनक है और इसे सुधारना चाहिए। वहीं, LGBTQ समुदाय ने सांसद की इस सोच का विरोध किया है और कहा कि गया जैसे शब्द के कोड का GAY होना किसी भी लिहाज से अपमानजनक नहीं माना जाना चाहिए।
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गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से अक्टूबर से मार्च के दौरान बैंकॉक, यंगून, थिंपू, जापान, दक्षिण कोरिया जैसी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के साथ घरेलू सेवाएं भी संचालित होती हैं, और सभी टिकटिंग सिस्टम, एयरलाइन ऑपरेटर व ढेरों यात्रियों के डेटा में GAY ही दिखता है। कोड बदलने की स्थिति में एयरलाइन उद्योग, बुकिंग सिस्टम, लॉजिस्टिक्स पर बडे स्तर पर बदलाव की जरूरत होगी, जिससे कई व्यावसायिक और तकनीकी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।