
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Sultanganj Assembly Constituency: बिहार के बांका लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सुल्तानगंज विधानसभा सीट, अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ, पिछले दो दशकों से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की मजबूत पकड़ के कारण राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनी हुई है। यह मुख्य रूप से ग्रामीण मतदाताओं वाला क्षेत्र है, जहां राजद और कांग्रेस गठबंधन के सामने जदयू के किले को भेदने की बड़ी चुनौती है।
सुल्तानगंज का राजनीतिक इतिहास 1951 में शुरू हुआ, जहां शुरुआती दौर में कांग्रेस का प्रभुत्व था। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने यहां से सात बार जीत दर्ज की। लेकिन 2000 के बाद से यह सीट पूरी तरह से जदयू के कब्जे में आ गई है, जिसने अब तक यहां से छह बार विजय हासिल की है। यह क्षेत्र अब जदयू का एक तरह से अभेद्य किला बन चुका है। पिछले चुनाव (2020) में जदयू के ललित नारायण मंडल ने कांग्रेस के ललन कुमार को हराकर अपनी सीट बरकरार रखी थी।
जदयू ने एक बार फिर ललित नारायण मंडल पर भरोसा जताया है। उनके सामने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के चंदन कुमार और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से राकेश कुमार की चुनौती है। यह मुकाबला त्रिकोणीय होने की उम्मीद है, जहां जदयू को लगातार सातवीं बार जीत दर्ज करने की चुनौती होगी।
सुल्तानगंज में जातीय समीकरणों का प्रभाव कड़ा होता है। मुस्लिम और यादव वोटर अच्छी तादाद में हैं, जो पारंपरिक रूप से राजद के वोट बैंक माने जाते हैं। वहीं, भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कुर्मी मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है। जदयू अपने आधार वोटों को पिछड़े वर्गों और सवर्णों के बीच संतुलन साधकर मजबूत करती है। चूंकि यह सीट ग्रामीण है, यहां जातिगत गोलबंदी और स्थानीय नेतृत्व की स्वीकार्यता ही चुनाव का परिणाम तय करती है।
सुल्तानगंज की पहचान उसकी गहरी धार्मिक आस्था से जुड़ी है। गंगा नदी में फैली एक चट्टानी पहाड़ी पर स्थित अजगैबीनाथ मंदिर सुल्तानगंज की धार्मिक पहचान है। इसके साथ ही हर साल श्रावण मास में यहां से देवघर तक की कांवड़ यात्रा शुरू होती है, जो लाखों श्रद्धालुओं को जोड़ती है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है।
यह क्षेत्र महाभारत काल के अंग देश से जुड़ा है और महर्षि जह्नु द्वारा गंगा नदी को निगलने की पौराणिक कथा भी इसी क्षेत्र की धरोहर है। यहां से मिली गुप्तकालीन कांस्य बुद्ध प्रतिमा क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है।
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2025 का चुनाव यह तय करेगा कि क्या जदयू सुल्तानगंज में अपना वर्चस्व कायम रखती है या राजद और जन सुराज की चुनौती इस किले में सेंध लगाने में कामयाब होती है।






