
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Gaighat Assembly Constituency: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की गायघाट विधानसभा सीट उन राजनीतिक धरातलों में गिनी जाती है, जहां हर चुनाव में एक अलग समीकरण होता है और मतदाताओं का जनादेश पलटी मारता रहता है। 1967 में गठित यह पूरी तरह से ग्रामीण सीट, गंडक और बागमती नदियों की बाढ़ से प्रभावित होने के कारण बाढ़, सड़क और रोजगार जैसे स्थानीय मुद्दों के बीच हमेशा से ही एक निर्णायक चुनावी अखाड़ा बनी रही है।
गायघाट का चुनावी इतिहास अस्थिरता और दल-बदल से भरा रहा है, जहां महेश्वर प्रसाद यादव का नाम सबसे प्रमुख रहा। महेश्वर प्रसाद यादव ने 1990 में निर्दलीय से लेकर 2015 में राजद तक विभिन्न दलों से जीत दर्ज की, जो इस क्षेत्र में यादव समुदाय के वर्चस्व को दर्शाता है। 2010 में भाजपा की वीणा देवी ने महेश्वर यादव को हराकर सीट पर कब्जा किया, लेकिन 2015 में महेश्वर यादव ने वापसी करते हुए उन्हें हरा दिया।
2020 विधानसभा चुनाव में राजद के निरंजन राय ने जदयू के महेश्वर यादव को हराकर सीट पर कब्जा किया। इस चुनाव में लोजपा के उम्मीदवार ने वोटों का बंटवारा करके राजद को सीधा फायदा पहुंचाया था।
गायघाट में जातीय समीकरण जीत की कुंजी तय करते हैं, जहां विभिन्न समुदायों का संतुलन निर्णायक होता है। इस क्षेत्र में यादव और मुस्लिम मतदाता राजद के पारंपरिक और मजबूत वोट बैंक हैं। वहीं, भूमिहार और ब्राह्मण समुदाय भाजपा के साथ जुड़े रहते हैं। जबकि, कुशवाहा, दलित और मुसहर समुदायों में जदयू का मजबूत आधार है। 3.30 लाख से अधिक मतदाताओं वाली इस सीट पर, जिस गठबंधन की जातीय गोलबंदी मजबूत होती है, जीत उसी की सुनिश्चित होती है।
गंडक और बागमती नदियों के किनारे बसा यह क्षेत्र हर साल बाढ़ की चपेट में आता है, जिससे किसान और ग्रामीण जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। हर साल आने वाली बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे किसान परेशान रहते हैं और सिंचाई व्यवस्था कमजोर बनी हुई है। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं और गांवों में शिक्षा तथा रोजगार के अवसरों की कमी सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। युवाओं का पलायन यहां एक बड़ा चुनावी मुद्दा है।
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गायघाट विधानसभा क्षेत्र की जनता की सबसे बड़ी मांग बाढ़ का स्थायी समाधान, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और गांवों तक सड़क संपर्क का विस्तार है, जिन पर चुनावी जीत का दारोमदार टिका है। 2025 का चुनाव गायघाट के लिए एक बार फिर अस्थिरता और कड़े मुकाबले का गवाह बनेगा, जहां राजद को अपनी सीट बरकरार रखने के लिए जातीय समीकरणों को साधने की चुनौती होगी, जबकि एनडीए वापसी के लिए पूरी ताकत लगाएगा।






