बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Kahalgaon Assembly Constituency: बिहार के भागलपुर जिले की कहलगांव विधानसभा सीट, जो ऐतिहासिक विक्रमशिला महाविहार की धरती है, अपने राजनीतिक मिजाज के कारण हमेशा सुर्खियों में रही है। यह सीट एक समय परंपरागत रूप से कांग्रेस का अभेद्य गढ़ थी, लेकिन 2020 के चुनाव में यहां एक बड़ा उलटफेर हुआ, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पहली बार जीत हासिल कर इतिहास रच दिया। 2025 में, भाजपा के सामने इस जीत को दोहराने और अपने किले को मजबूत करने की चुनौती होगी।
कहलगांव विधानसभा सीट 1951 में स्थापित हुई और इसका राजनीतिक इतिहास काफी समृद्ध रहा है। इस सीट पर कांग्रेस ने अब तक 11 बार जीत दर्ज की है, जो इसे पार्टी का एक मजबूत किला बनाता था। कांग्रेस के दिग्गज नेता सदानंद सिंह लंबे समय तक यहां का प्रतिनिधित्व करते रहे। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पवन यादव ने कांग्रेस के दिग्गज नेता सदानंद सिंह के बेटे शुभानंद को हराकर जीत हासिल की।
यह भाजपा के लिए एक ऐतिहासिक सफलता थी, जिसने पहली बार इस सीट पर अपना खाता खोला। जदयू, सीपीआई और निर्दलीय ने भी यहां एक-एक बार जीत दर्ज की है, जो मतदाताओं के बदलते चुनावी मिजाज को दर्शाता है।
कहलगांव का चुनावी समीकरण यादव और मुस्लिम मतदाताओं पर केंद्रित है, जो इस सीट को सियासी रूप से संवेदनशील और प्रतिस्पर्धी बनाता है। यादव और मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पारंपरिक रूप से इनका झुकाव कांग्रेस या राजद की ओर रहा है, लेकिन 2020 में वोटों का बंटवारा भाजपा के पक्ष में गया। वहीं, ब्राह्मण, कोइरी, रविदास और पासवान समुदाय के वोटर भी अच्छी तादाद में हैं, जिनके वोट का रुझान चुनाव परिणाम को प्रभावित करता है।
गंगा नदी के किनारे बसे होने के कारण यहां की भूमि उपजाऊ है, लेकिन यह क्षेत्र कई गंभीर समस्याओं से भी जूझ रहा है। बाढ़ और गंगा कटाव की समस्या हर साल ग्रामीण जीवन और खेती को प्रभावित करती है। रोजगार, कृषि, बिजली और सड़क जैसे बुनियादी मुद्दे कहलगांव के चुनावी विमर्श में हमेशा केंद्र में रहते हैं। ये समस्याएं क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती हैं और मतदाताओं के बीच चर्चा का प्रमुख विषय बनी रहती हैं।
कहलगांव का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इसे खास बनाता है। यहां 8वीं सदी के पाल वंश के राजा धर्मपाल द्वारा स्थापित विक्रमशिला महाविहार स्थित है, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के समकक्ष माना जाता था। 1494 से 1505 तक कहलगांव जौनपुर सल्तनत की निर्वासित राजधानी रहा था। गंगा नदी के किनारे मां काली और भगवान शिव के प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं के बीच लोकप्रिय हैं।
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2025 का चुनाव यह तय करेगा कि क्या भाजपा अपनी पहली जीत को कायम रखते हुए इस सीट को अपना गढ़ बनाती है, या कांग्रेस (राजद गठबंधन के साथ) यहां फिर से वापसी करने में सफल होती है।