दिनारा विधानसभा सीट, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Dinara Assembly Constituency: बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज अनुमंडल के अंतर्गत आने वाला दिनारा विधानसभा क्षेत्र, राज्य की राजनीति में एक अहम स्थान रखता है। यह विधानसभा क्षेत्र बक्सर लोकसभा सीट के छह खंडों में से एक है। पूर्व में डेहरी-ऑन-सोन, पश्चिम में बक्सर जिला और दक्षिण में कैमूर जिले से घिरा यह इलाका सोन नदी के किनारे बसा है, जो इसकी भौगोलिक और कृषिगत महत्ता को दर्शाता है।
दिनारा गंगा के मैदानी क्षेत्र में स्थित है और इसका नाम भोजपुरी शब्द “दियारा” से पड़ा, जिसका अर्थ है- नदी की धारा बदलने पर बनने वाला मौसमी टापू। यह नाम इसकी विशिष्ट भौगोलिक पहचान को रेखांकित करता है। यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटें, तो पता चलता है कि यह इलाका प्राचीनकाल में मगध, मौर्य और गुप्त जैसे शक्तिशाली साम्राज्यों का हिस्सा रह चुका है। मध्यकाल में पाल, शेरशाह सूरी और मुगल साम्राज्य का भी यहां प्रभाव रहा। ब्रिटिश शासन के दौरान भी दिनारा का प्रशासनिक महत्व बना रहा, जो इसकी निरंतर केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है।
दिनारा विधानसभा की राजनीति में यहां का जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभाता है। यहां की आबादी मुख्यतः ग्रामीण है, जहां यादव, कुर्मी, कोइरी, दलित और भूमिहार प्रमुख समुदाय हैं।
ओबीसी वर्ग के वोटर : लगभग 45 फीसदी मतदाता ओबीसी वर्ग से हैं। यादव जहां राजद के पारंपरिक समर्थक माने जाते हैं, वहीं कुर्मी और कोइरी समुदाय का झुकाव भाजपा और जदयू की ओर रहता है।
भूमिहार और दलित वोटर : इस क्षेत्र में भूमिहारों की संख्या लगभग 25 फीसदी है, जो आम तौर पर भाजपा समर्थक माने जाते हैं। वहीं, करीब 20 फीसदी दलित मतदाता भी एनडीए (NDA) के लिए निर्णायक साबित होते हैं।
मुस्लिम मतदाताओं का रुझान : मुस्लिम मतदाता लगभग 6.8 फीसदी हैं, जो आमतौर पर महागठबंधन का समर्थन करते हैं।
इस जटिल जातीय ताने-बाने के कारण, दिनारा में हर बिहार असेंबली इलेक्शन 2025 या अन्य चुनावों में मुकाबला रोचक और करीबी होता है। बिहार पॉलिटिक्स में यह सीट हमेशा समीकरणों को साधने के लिए महत्वपूर्ण रही है।
दिनारा विधानसभा सीट की स्थापना 1951 में हुई थी और अब तक यहां 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इस सीट पर विभिन्न दलों का प्रभुत्व रहा है। कांग्रेस ने अब तक सर्वाधिक 5 बार जीत दर्ज की है। वहीं, जदयू को भी 4 बार सफलता मिली है। इसके अलावा, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने संयुक्त रूप से 3 बार बाजी मारी। जनता दल ने 2 बार, जबकि जनता पार्टी, बसपा और राजद ने 1-1 बार जीत हासिल की है। हाल के 2020 विधानसभा चुनाव में राजद के विजय कुमार मंडल ने जीत दर्ज कर सीट अपने नाम की थी, जो रोहतास क्षेत्र में राजद की बढ़ती पकड़ को दर्शाता है।
राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने के बावजूद, दिनारा विकास की दौड़ में काफी पीछे है। बुनियादी ढांचे की कमी यहां की सबसे बड़ी समस्या है। कई गांवों में आज भी बिजली और सड़कें पूरी तरह नहीं पहुंची हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बेहद सीमित हैं। उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को सासाराम या पटना जैसे बड़े शहरों का रुख करना पड़ता है।
इन सबसे बड़ी समस्या रोजगार का अभाव है। इसी अभाव के कारण, हर साल बड़ी संख्या में युवा पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में प्रवास करते हैं और खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते हैं। पलायन यहां का एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर चुनावी बहसों में अक्सर चर्चा होती है, लेकिन समाधान जमीन पर कम दिखता है।
2024 में चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, दिनारा की कुल जनसंख्या 5,19,690 है, जिनमें 2,70,236 पुरुष और 2,49,454 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,07,795 है। मतदाताओं में 1,61,167 पुरुष, 1,46,625 महिलाएं और 3 थर्ड जेंडर शामिल हैं। मतदाताओं की यह बड़ी संख्या ही इस सीट को बिहार चुनाव के लिहाज से और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
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कहा जाता है कि दिनारा विधानसभा सीट सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह बिहार पॉलिटिक्स में जातीय समीकरणों, ऐतिहासिक महत्व और विकास के संघर्ष का एक बेहतरीन उदाहरण है। आगामी बिहार असेंबली इलेक्शन 2025 में यह देखना दिलचस्प होगा कि यहां के मतदाता विकास के वादों पर भरोसा करते हैं, या फिर पारंपरिक जातीय समीकरणों पर आधारित राजनीति को चुनते हैं। स्थानीय मुद्दे और विकास की मांग ही इस चुनाव में परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएगी।