इमामगंज विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Imamganj Assembly Seat Profile: बिहार की सियासत में गयाजी जिले का इमामगंज हमेशा से एक विशेष पहचान रखता रहा है। यह सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र नहीं, बल्कि यह वह इलाका है जहां पहाड़, जंगल और ऐतिहासिक विद्रोहों की कहानियां गूंजती हैं। राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का मजबूत गढ़ मानी जाती है।
इमामगंज अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, जहां उम्मीदवार-केंद्रित राजनीति का दबदबा रहा है। मांझी ने जनता दल यूनाइटेड से अलग होने के बाद अपनी पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के बैनर तले 2015 और 2020 के चुनावों में लगातार जीत दर्ज कर अपनी राजनीतिक पकड़ को साबित किया है।
इमामगंज प्रखंड 255 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसमें 195 गांव शामिल हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की साक्षरता दर 59.61 प्रतिशत है। भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से, गयाजी जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर पश्चिम में स्थित इमामगंज का नाम शेरघाटी के राजा इमाम बख्श खान के नाम पर पड़ा था और ब्रिटिश हुकूमत के समय ‘कोल विद्रोह’ में भी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।
2025 विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनाव से तैयार हो गई थी। जीतन राम मांझी के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद, उनकी बहू दीपा कुमारी ने यह सीट बरकरार तो रखी, लेकिन जीत का अंतर बहुत कम रहा। उनकी जीत का अंतर सिर्फ 5,945 वोटों का रहा था। इस मामूली अंतर का मुख्य कारण प्रशांत किशोर की जन सुराज के उम्मीदवार अजीत दास का मैदान में उतरना था। जन सुराज के उम्मीदवार ने अकेले 37,082 वोट पाकर इस पारंपरिक द्वंद्व को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया, जिसने मांझी परिवार के लिए खतरे की घंटी बजा दी।
यह उपचुनाव एक स्पष्ट संकेत था कि इमामगंज की जनता अब केवल पारंपरिक राजनीतिक दलों के बीच ही बँटी हुई नहीं है। जन सुराज ने ‘नया बिहार’ बनाने के घोषणा को लेकर जनता के बीच जाकर एक मजबूत तीसरा ध्रुव स्थापित किया है, जो आगामी चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकता है।
विधानसभा चुनाव 2025 में पहली बार दो प्रमुख राजनीतिक दलों की महिला उम्मीदवार आमने-सामने मैदान में उतरकर एक कड़ा मुकाबला करने को तैयार हैं। यह मुकाबला केवल सीटों का नहीं, बल्कि विकास के वादों और राजनीतिक विरासत को बचाने की भी जंग का है।
दीपा कुमारी (हम/एनडीए): वह अपने ससुर जीतन राम मांझी के नौ साल के कार्यकाल और विधायक बनने के बाद आठ महीनों में किए गए अपने काम पर वोट मांग रही हैं। उनका मुख्य चुनावी आधार विकास और मांझी परिवार की विरासत है।
रीतू प्रिया चौधरी (राजद/महागठबंधन): वह पार्टी के विकास और नौकरी के वादे के आधार को बनाकर मतदाताओं से वोट अपील कर रही हैं। महागठबंधन की ओर से वह रोज़गार और सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुखता से उठा रही हैं।
इस पारंपरिक द्वंद्व को जन सुराज के अजीत दास त्रिकोणात्मक बनाने की पूरी कोशिश में हैं। वह प्रशांत किशोर के नए राजनीतिक मॉडल और क्षेत्रीय विकास के वादों के साथ जनता के बीच एक विकल्प के रूप में उभर रहे हैं।
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इमामगंज विधानसभा चुनाव मांझी परिवार के लिए अपनी विरासत बचाने की कड़ी परीक्षा है। दीपा कुमारी और रीतू प्रिया चौधरी रोजगार एवं विकास के नए वादों के साथ चुनावी मैदान में हैं। इन दोनों के बीच जन सुराज की मजबूत उपस्थिति मुकाबले को और भी अप्रत्याशित बना रही है। यह चुनाव न केवल इमामगंज के भविष्य, बल्कि बिहार की नई राजनीतिक दिशा को भी तय करेगा, जहाँ एक नया दल पारंपरिक राजनीति को चुनौती दे रहा है।