'बैल पोला' किसानों के सारथी गाय और बैलों को शुक्रिया कहने का है त्योहार, जानें कब और कैसे मनाते हैं यह पर्व
भारत देश त्योहारों का उत्सवों का देश हैं। यहां कई त्यौहार मनाएं जाते हैं। यह त्यौहार लोगों को उनके धार्मिक परंपराओं के साथ जोड़े रखता हैं। वही भारत एक कृषि प्रधान देश हैं। कृषि के उत्पाद को बढ़ाने के लिए मवेशियों का अहम रोल होता हैं। वही हिंदू धर्म में मवेशियों की पूजा अर्चना की जाती हैं। मवेशियों की पूजा अर्चना के लिए महाराष्ट्र। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ‘बैल-पोला’ मनाया जाता हैं। किसानों के सारथी बैलों और गायों की इस दिन पूजा कर उन्हें धन्यवाद किया जाता हैं। गायों और बैलों को समर्पित यह त्यौहार ‘बैल-पोला’ हर साल भाद्रपद महीने की अमावस्या के दिन धूमधाम से मनाया जाता हैं। वही अंग्रेजी कैलेंडर और तिथि अनुसार यह त्यौहार हर साल 6 सितंबर को मनाया जाता हैं।
Bail-Pola 2021
आपको बता दे कि बैल-पोला दो दिवसीय त्यौहार हैं। इसके पहले दिन पर बड़ा पोला और दूसरे दिन छोटा पोला मनाते हैं। भारतीय किसान अपनी खेती बैल और गायों के मदद से करते हो। भले ही अब के जमाने में ट्रेक्टर का इस्तेमाल किया जाता हो। मगर पुराने जमाने में हर किसान अपनी गाय और बैलों के सहारे ही खेती करते थे। भारत देश और हिंदू धर्म में पशुओं को भगवान के बराबर मानते हैं। इसलिए उनकी पूजा अर्चना की जाती हैं। आज भी हमारे देश के अधिकतर घरों (गाओं) में दरवाजे पर गाय और बैल को बांधते हैं। किसानों का ऐसा मानना होता है कि जिस घर में जितने ज्यादा गाय और बैल होते हैं उस घर में उतनी ज्यादा सुख-समृद्धि आती हैं। उनके लिए उनके सारथी के रूप में पशु मां लक्ष्मी के समान हैं। आज कल गाओं में भले ही किसान के पास ट्रेक्टर आ गया हो लेकिन आज भी यह किसान अपने घर के बाहर गाय-बैल को बढ़ने में अपना सम्मान मानते हैं। यह अपने पशुओं को अपने परिवार का अहम सदस्य मानते हैं। यही नहीं बल्कि इन पशुओं की पूजा भी कर उन्हें धन्यवाद करते हैं।
कैसे मनाते हैं ‘बैल-पोला’बैल पोला हर साल भाद्रपद महीने की अमावस्या के दिन धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन सभी किसान अपने गाय और बैलों को रस्सी से आजाद कीआरती हैं और फिर इनके पूरे शरीर पर हल्दी का उबटन लगाकर सरसों के तेल से मालिश करते हैं। फिर अगले दिन वह अपने गाय और बैलों को नहलाकर उनका श्रृंगार करते हैं। किसान अपनी गे बैल को किसी दुल्हन से कम नहीं सजाते हैं। किसान अपने पशुओं के गले में नई घंटी डालते हैं, उनके सींगो को कलर करते हैं। इसके अलावा उन्हें वस्त्र और धातुं के छल्ले भी पहनाते हैं। फिर अपने गाय बैलों के माथे पर तिलक लगाकर उन्हें चारा और गुड़ खिलते हैं।
इतना ही नहीं बल्कि घर के सभी सदस्य अपने इन पशुओं के सामने हाथ जोड़कर उनका दिल से धन्यवाद भी कहते हैं। वही बैल पोला के मौके पर ग्रामीण जगह सभी किसान ढोल, ताशा बजाते हुए पूरे गांव गांव में जुलुस निकालते हैं। फिर बैल पोला के अगले दिन किसान अपनी नई फसल उगाने के लिए अपने अपने खेतों का रुख करते हैं। वही आपको बता दे कि विदर्भ के ज्यादातर क्षेत्रों में बैल पोला दो दिन तक मानते हैं। बैल पोला के पहले दिन किसान अपने बैल गाय को सजाते धजाते हैं |
वही दूसरे दिन बच्चे छोटे छोटे मिटटी से बने बैल को सजाकर घर-घर ले जाते हैं। इसके बदले में उन बच्चों को हर घरों में पैसे या फिर उपहार मिलते हैं।