डोनाल्ड ट्रंप (डिजाइन फोटो)
US tariffs on India: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत को लेकर कई तीखे और आपत्तिजनक बयान दिए हैं। उन्होंने भारतीय व्यापार जगत को बड़ा झटका देते हुए 50 प्रतिशत टैरिफ थोप दिया है। पहले तो उन्होंने 25 फीसदी शुल्क लगाया, लेकिन इसके बाद एक और 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा कर दी। ट्रंप ने भारत पर यह भी आरोप लगाया कि वह अब भी रूस से तेल खरीद रहा है, जिससे यूक्रेन युद्ध में रूस की सैन्य मशीनरी को ताकत मिल रही है।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि भारत को अपना अच्छा दोस्त कहने वाले डोनाल्ड ट्रंप अब खफा नजर आ रहे हैं? इसकी कोई एक वजह नहीं कही जा सकती, लेकिन कुछ ऐसे कदम जरूर उठे हैं जो ट्रंप की पसंद के मुताबिक नहीं थे। नतीजतन, उनकी नाराजगी भारत पर टैरिफ के रूप में जाहिर हुई।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाने के पीछे कारण बताया है रूस से किया जा रहा तेल आयात। उनका कहना है कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने से रूस की युद्ध क्षमता को मजबूती मिलती है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से तेल खरीद में भारी इजाफा किया है। फिलहाल भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का लगभग 36 से 40 प्रतिशत हिस्सा रूस से खरीदता है। इससे भारत को सस्ते दामों पर तेल मिलता है, जिससे महंगाई को काबू में रखने में मदद मिलती है।
हालांकि, अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने इसकी आलोचना की है। डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि भारत रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से ‘रूसी युद्ध मशीन’ को ताकत दे रहा है, जिससे यूक्रेन में जारी जंग को बढ़ावा मिल रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप भारत पर इसलिए भी निशाना साध रहे हैं क्योंकि वह ब्रिक्स समूह को अमेरिकी डॉलर की वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देने वाला मानते हैं। ब्रिक्स समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था में करीब 40% योगदान देता है। इन देशों के बीच बढ़ता आपसी व्यापार और डॉलर के विकल्प के रूप में अन्य मुद्राओं की चर्चा ट्रंप को चिंता में डाल रही है, क्योंकि इससे अमेरिकी डॉलर की ताकत कमजोर हो सकती है। ट्रंप कई मौकों पर कह चुके हैं कि ब्रिक्स अमेरिकी हितों के खिलाफ काम करता है। भारत इस समूह का संस्थापक सदस्य है और वह रूस व चीन जैसे देशों के साथ ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में संबंध और मजबूत कर रहा है, जो ट्रंप की नजर में अमेरिका के लिए चिंता का विषय है।
दोनों देशो के व्यापार की सांकेतिक तस्वीर
डोनाल्ड ट्रंप बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को शांत करने में अहम भूमिका निभाई है। अब तक वे सार्वजनिक तौर पर यह बात करीब 30 बार दोहरा चुके हैं। हालांकि भारत सरकार ने हर बार इन दावों को सिरे से खारिज किया है। ट्रंप के लिए यह बात असहज करने वाली है कि भारत उनकी मध्यस्थता को मान्यता नहीं देता, जबकि वे इसे अपनी एक बड़ी कूटनीतिक सफलता मानते हैं।
ट्रंप का दावा है कि उन्होंने अमेरिका के प्रभाव और व्यापारिक समझौतों के ज़रिए भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोक दिया। उनका कहना है कि यदि उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो मामला परमाणु युद्ध तक पहुंच सकता था। दूसरी ओर, भारत का रुख इससे बिल्कुल अलग है, भारत का कहना है कि किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी, बल्कि यह मामला दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों, यानी डीजीएमओ स्तर की बातचीत से सुलझाया गया।
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इतना ही नहीं, ट्रंप और उनके समर्थकों ने तो इस कथित प्रयास के लिए नोबेल शांति पुरस्कार तक की मांग उठाई, लेकिन भारत ने हमेशा उनके इस दावे को नकारा है। ट्रंप को यही बात सबसे ज़्यादा खलती है कि भारत उनके योगदान को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
भारत और अमेरिका के बीच मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) को लेकर बातचीत जारी है, लेकिन यह बातचीत कृषि और डेयरी उत्पादों के मुद्दे पर आकर अटक जाती है। दरअसल, भारत इन क्षेत्रों को विदेशी प्रतिस्पर्धा के लिए खोलने से हिचक रहा है, क्योंकि इससे देश के कृषि और डेयरी सेक्टर पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो भारतीय किसानों और डेयरी उत्पादकों की आर्थिक स्थिति और कमजोर हो सकती है।
टैरिफ वार
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार में असंतुलन डोनाल्ड ट्रंप की नाराज़गी की एक अहम वजह रहा। ट्रंप प्रशासन ने इस असंतुलन को ध्यान में रखते हुए भारत पर अधिक आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने का फैसला किया।व्यापार असंतुलन वह स्थिति होती है जब कोई देश किसी दूसरे देश से ज़्यादा माल खरीदता है, लेकिन उसके बदले में कम सामान बेचता है। अमेरिका का भारत 2024 में व्यापार घाटा 45.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5.4% अधिक था।
इसका मतलब यह है कि भारत ने अमेरिका को जितना निर्यात किया, उतना अमेरिका से आयात नहीं किया। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि उन्होंने आयात शुल्क तय करने के लिए एक फॉर्मूला अपनाया, जिसमें व्यापार घाटा और कुल आयात के अनुपात के आधार पर टैरिफ रेट निर्धारित किया गया। इसी गणना के मुताबिक भारत पर 25% शुल्क लगाया गया।