मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
माले: मालदीव ने मंगलवार को कहा कि भारत के साथ मौजूदा रक्षा समझौतों में संशोधन किया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता प्रभावित नहीं हो। मालदीव के रक्षा मंत्री मोहम्मद घासन मौमून ने संसद के सदस्यों को यह भी बताया कि मालदीव में तैनात 74 भारतीय सैनिक, जिन्हें पिछले साल भारत के साथ हुए समझौते के तहत वापस भेजा गया था, मालदीव में रहने के दौरान निहत्थे थे।
मौमून का यह बयान मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की ओर से 15 घंटे की मैराथन प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह कहने के कुछ दिनों बाद आया है कि भारत सहित अन्य देशों के साथ पिछली सरकार की ओर से किए गए समझौतों को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है।
राष्ट्रपति मुइज्जू की टिप्पणियों की विपक्षी नेता ने आलोचना की थी, उन्होंने भारत जैसे देशों के साथ समझौतों के बारे में 2023 के चुनाव अभियान के दौरान ‘झूठे दावे’ करने के लिए उनसे माफी की मांग की थी मंगलवार को संसद सदस्यों की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए मौमून ने कहा कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे घनिष्ठ संबंधों के तहत भारत के साथ किए गए समझौतों में संशोधन किया गया है या किया जा रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा करें।
मौमून ने कहा कि 1965 में मालदीव को स्वतंत्रता मिलने के बाद से भारत के साथ 100 से अधिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए और उनमें से चार रक्षा मंत्रालय से संबंधित हैं। संशोधित किए जा रहे प्रमुख समझौतों में से एक भारत की सहायता से उथुरु थिलाफाल्हू में एक नौसैनिक ‘डॉकयार्ड’ के विकास से संबंधित है।
साल 2023 के चुनाव से पहले विपक्ष में रहने के दौरान मुइज्जू के नेतृत्व वाली पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) ने उथुरु थिलाफाल्हू समझौते के पहलुओं की आलोचना की थी, जिसमें दावा किया गया था कि कुछ प्रावधानों का राष्ट्रीय नीति के साथ टकराव है। मंत्री ने कहा कि ऐसे खंडों में अब संशोधन किया जा रहा है, लेकिन उन्होंने इससे अधिक कोई विवरण साझा नहीं किया।
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चीन समर्थक राष्ट्रपति मुइज्जू के नवंबर 2023 में पदभार ग्रहण करने के बाद से मालदीव और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट देखी गई। शपथ लेने के कुछ ही घंटों के भीतर उन्होंने अपने देश से भारतीय सैन्यकर्मियों को वापस भेजे जाने की मांग की थी। इसके बाद, मार्च और 10 मई के बीच आपसी सहमति से भारतीय सैन्यकर्मियों की जगह आम नागरिकों को नियुक्त किया गया।