डोनाल्ड ट्रंप, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
वाशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने की इच्छा लगातार बढ़ती जा रही है। हाल के महीनों में, वह विश्व भर में आधा दर्जन से अधिक युद्धों को रुकवाने का श्रेय अपने नाम कर रहे हैं, हालांकि यह सच्चाई अलग है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष में अभी तक उनकी कोई भूमिका सफल नहीं हुई है।
ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति पद दोबारा संभालने से पहले, अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही बार-बार यह दावा किया था कि यदि वे पुनः सत्ता में आते हैं, तो मात्र 24 घंटे के भीतर रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को समाप्त कर देंगे।
व्हाइट हाउस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की वकालत शुरू कर दी है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने कहा कि ट्रंप को विश्व के लगभग छह देशों के बीच युद्धविराम कराने के लिए यह पुरस्कार मिलना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई तनावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच की स्थिति को सुधारने का भी श्रेय लिया, हालांकि यह दावा विवादास्पद है।
इससे पहले, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में स्पष्ट किया था कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर पाकिस्तानी सेना के प्रमुख के अनुरोध पर लागू हुआ था और इसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी। इस प्रकार, ट्रंप द्वारा इस मामले में श्रेय लेने का प्रयास भारत के आधिकारिक बयान के विपरीत है।
लेविट ने गुरुवार को व्हाइट हाउस में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि ट्रंप ने कई देशों के बीच चल रहे विवादों को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने थाईलैंड-कंबोडिया, इजराइल-ईरान, रवांडा-डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, सर्बिया-कोसोवो और मिस्र-इथियोपिया जैसे देशों के बीच टकराव को समाप्त करवाने में सफलता पाई है।
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लेविट ने बताया कि ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के पहले छह महीनों में ही हर महीने एक शांति समझौता या युद्धविराम करवाने का औसत हासिल किया है। उन्होंने कहा कि इन उपलब्धियों को देखते हुए अब ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का समय आ गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में संसद में बयान दिया था कि किसी भी विदेशी नेता ने भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को रोकने का अनुरोध नहीं किया था। इसी कड़ी में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी बुधवार को साफ तौर पर कहा कि पाकिस्तान के साथ युद्धविराम पर पहुंचने में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सैन्य कार्रवाई को रोकने और व्यापारिक मामलों के बीच कोई संबंध नहीं था। राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हुई चर्चा के दौरान जयशंकर ने बताया कि 22 अप्रैल को पुलवामा आतंकी हमले से लेकर 16 जून तक प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कोई फोन वार्ता नहीं हुई थी।
(एजेंसी इनुट के साथ)