
शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के साथ आसिम मुनीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
UAE President Pakistan Visit: यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान हाल ही में पाकिस्तान आए थे, लेकिन उनकी यह यात्रा पूरी तरह निजी थी। इसके बावजूद कुछ मीडिया और सरकारी बयान इसे आधिकारिक दौरे जैसा पेश करने की कोशिश कर रहे थे। पाकिस्तान के डिप्टी प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री इशाक डार ने स्पष्ट किया कि शेख मोहम्मद का यह दौरा आधिकारिक नहीं था और उन्होंने राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के कार्यालय का दौरा नहीं किया।
शेख मोहम्मद ने रावलपिंडी के नूर खान एयरबेस पर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से केवल 4-5 मिनट की औपचारिक मुलाकात की। इसमें सिर्फ शिष्टाचार और तस्वीरें शामिल थीं। कोई द्विपक्षीय वार्ता, समझौता या MoU पर दस्तखत नहीं हुए। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने उन्हें स्वागत नहीं किया और शेख मोहम्मद इस्लामाबाद भी नहीं गए। इस कारण पाकिस्तान की राजनीति में कई सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह यात्रा किसके लिए और किस उद्देश्य से थी।
जानकारी के मुताबिक, शेख मोहम्मद की यात्रा का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के निजी पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होना था। वे लगभग पांच घंटे तक आर्मी हाउस और GHQ में रहे। हालांकि, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर व्यापार, निवेश और ऊर्जा के क्षेत्र में संभावित सहयोग की बात कही, लेकिन बाद में स्पष्ट किया गया कि कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ।
इस दौरान शेख मोहम्मद और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के बीच संक्षिप्त चर्चा हुई। इसमें गाजा के लिए प्रस्तावित इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स का जिक्र था, लेकिन इसके बारे में कोई औपचारिक विवरण सामने नहीं आया। आने वाले हफ्तों में आसिम मुनीर के UAE दौरे की भी संभावना जताई जा रही है।
इस पूरी घटना ने पाकिस्तान की सत्ता संरचना को फिर से उजागर किया है। यहां विदेश नीति और कूटनीतिक निर्णय सिविल सरकार की बजाय सैन्य नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमते दिख रहे हैं। शेख मोहम्मद की यात्रा ने यह साफ कर दिया कि पाकिस्तान में सैन्य नेतृत्व का प्रभाव और भूमिका कितनी अहम है, खासकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों और महत्वपूर्ण दौरों के मामलों में।
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UAE राष्ट्रपति की यह यात्रा निजी थी, इसका उद्देश्य सेना प्रमुख से मुलाकात करना था, और इसमें कोई आधिकारिक समझौता या बड़ी कूटनीतिक बातचीत नहीं हुई। बावजूद इसके, पाकिस्तान की सरकार ने इसे महत्व देने की कोशिश की, जिससे मीडिया और आम जनता में भ्रम पैदा हुआ।






