तस्वीर 2024 फरवरी महीने की है जब अनुरा दिसानायके भारत आए थे इस दौरान उन्होंने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी
नई दिल्ली: श्रीलंका के वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानयके अब श्रीलंका के नए राष्ट्रपति हैं। दिसानयके को चीन का समर्थन करने वाला नेता माना जाता है। ऐसे में कहीं न कहीं इसका असर भारत पर पड़ सकता है। इस पर विदेश विभाग के कई जानकारों ने अपना मत साझा किया है।
कई विदेश नीति के जानकारों का कहना है कि श्रीलंका की ऐसी कई विषम परिस्थितयों में भारत ने उसका साथ दिया है। श्रीलंका की मदद की है। इसलिए चाहकर भी अनुरा कुमारा दिसानयके, भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। दिसानयके भले से चीन के समर्थक हों, लेकिन भातर विरोधी कदम नहीं उठाएंगे।
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भारत के लिए हानिकार हैं दिसानयके
विदेश विभाग के जानकार ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में एक मार्क्सवादी को शपथ दिलाई गई है। नेपाल का नेतृत्व पहले से ही एक कम्युनिस्ट कर रहा है। बांग्लादेश और पाकिस्तान में सैन्य-समर्थित, अमेरिका समर्थित शासन हैं। मालदीव में इस्लामवादी झुकाव वाला राष्ट्रपति है। और म्यांमार में, विद्रोहियों को अमेरिका के नेतृत्व वाली सैन्य सहायता भारत के लिए भी हानिकारक है।
दिसानयके और उनकी पार्टी जेवीपी के विरोधी रहे हैं
नई दिल्ली स्थित आब्जर्व रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष प्रोफेसर हर्ष वी पंत का मानना है कि भले ही दिसानायके और जेवीपी का रुख पहले थोड़ा भारत विरोधी रहा हो लेकिन हाल के सालों में बदलाव देखा गया है। जबकि उनकी पार्टी जेवीपी परंपरागत रूप से भारत विरोधी रही है।
पंत ने कहा कि दिसानायके की पार्टी शुरू से ही भारत के प्रभाव के खिलाफ रुझान रहा है। अगर आप उनके इतिहास को देखेंगे, तो पाएंगे कि उन्होंने भारत के खिलाफ कई बार हिंसक विरोध किया है।
दिसानयके क्यों भारत को नहीं कर सकते नजरअंदाज
साल 2022 में जब श्रीलंका भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, उस वक्त दिसानायके, तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के मुखर विरोधी माने जाते थे। तब राजपक्षे की सरकार गिरी और विक्रमसिंघे आए। उस दौरान भारत ने जिस तरह श्रीलंका की मदद की थी, दिसायनके शायद उसे याद रखेंगे।उन्होंने खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले नेता के तौर पर पेश किया था। चेन्नई के लोयोला कॉलेज के प्रोफेसर ग्लैडसन जेवियर भी इस बात को मानते हैं कि भारत की ओर से की गई आर्थिक मदद को नए राष्ट्रपति ध्यान में रखेंगे। उन्होंने ये बात बीबीसी के संवादाता से इस मुद्दे पर बातचीत के दौरान कही थी।
भारत में श्रीलंका की विदेश नीति में दिक्कत क्या है
दरअसल, श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानयके वामपंथी पार्टी के नेता हैं। वे खुद भी वामपंथी विचारधारा के नेता हैं। यही नहीं दिसानयके चीन के समर्थक भी हैं। चीन जाे कि भारत का धुरविरोधी प्रतिद्वंदी देश है। वहीं भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। ऐसे में विपरीत विचारधारा होने पर दाेनों देशों के संबंधों पर असर पड़ना वाजिब माना जा रहा है।
भारत को क्यों है दिसानायके से उम्मीद
बता दें कि इस साल फरवरी महीने में अनुरा कुमारा दिसानायके भारत आए थे। हालांकि तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि आज से करीब सात महीने बाद वो श्रीलंका के राष्ट्रपति बनेंगे। तब उस समय भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मुलाकात पर खुशी व्यक्त की थी। उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पोस्ट में लिखा था कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को गहरा और मजबूत करने पर अच्छी बातचीत हुई है।
चीन से भारत पर क्या असर पड़ेगा
दरअसल, चीन से भारत को जो सबसे बड़ी दिक्कत है वो है चीन की विस्तारवादी नीति। चीन, भारत के पड़ोसी देशों को आर्थिक सहायता और ऋण देकर उनसे नजदीकियां साधने की नीति अपनाता है। इसके बदले उन देशों के जमीनों का बकायदे फायदे उठाता है। वहां पर डेवलपमेंट का काम करता है और इस बहाने धीरे-धीरे भारत की अधिकृत जमीनों पर कब्जा करने का प्रयास करता है।
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एक नजर दिसानायके की राजनीति पर
22 सितंबर को आए नतीजों में वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की। वो जेवीपी यानी जनता विमुक्ति पेरामुना के नेता हैं और एनपीपी यानी नेशनल पीपल्स पावर गठबंधन से चुनाव लड़ रहे थे। साल 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके को महज 3 % वोट मिले थे। वहीं इस बार के चुनाव में पहले राउंड में दिसानायके को 42.31% और उनके प्रतिद्वंद्वी रहे सजीथ प्रेमदासा को 32.76% वोट मिले।