भूकंप की सांकेतिक तस्वीर, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Earthquake Latest News: रूस के सुदूर पूर्वी इलाके कमचटका प्रायद्वीप में शुक्रवार तड़के तेज भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिससे धरती जोर से कांप उठी। अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण (USGS) के मुताबिक, पेट्रोपावलोव्स्क-कमचाट्स्की क्षेत्र में आए इस भूकंप की तीव्रता 7.8 मापी गई और इसका केंद्र महज 10 किलोमीटर गहराई में था। तेज झटकों के बाद लगातार आफ्टरशॉक्स भी महसूस किए गए, जिनकी तीव्रता 5.8 तक पहुंची।
कमचटका क्षेत्र के गवर्नर व्लादिमीर सोलोडोव ने टेलीग्राम पर जानकारी दी कि भूकंप के बाद प्रायद्वीप के पूर्वी तट पर सुनामी की चेतावनी जारी की गई है। उन्होंने बताया कि लोगों को संभावित खतरे के बारे में सचेत किया जा रहा है, हालांकि अब तक किसी बड़े नुकसान की पुष्टि नहीं हुई है। वहीं, अमेरिकी सुनामी चेतावनी केंद्र ने कहा है कि अभी बड़े पैमाने पर सुनामी का कोई खतरा नहीं दिख रहा है।
एक सप्ताह पहले शनिवार को इसी क्षेत्र में 7.4 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया था। हालांकि उस समय प्रशांत सुनामी चेतावनी केंद्र (PTWC) ने स्पष्ट किया था कि सुनामी का कोई खतरा नहीं है। इससे पहले, 29 जुलाई 2025 को कमचटका तट पर 8.8 तीव्रता का भीषण भूकंप आया था, जिसे हालिया इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में गिना गया। उस दौरान रूस, जापान, अलास्का, गुआम, हवाई और कई प्रशांत द्वीपों में बड़े पैमाने पर सुनामी अलर्ट जारी किए गए थे।
कई स्थानों पर 3-4 मीटर ऊंची लहरों ने तबाही मचाई और तटीय इलाकों से लोगों को तुरंत सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। जापान ने अपने प्रशांत तट पर 3 मीटर ऊंची लहरों का अलर्ट जारी किया था, जबकि अमेरिका के वेस्ट कोस्ट पर एडवाइजरी लागू की गई थी।
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रूस का सुदूर पूर्वी इलाका कामचटका प्रायद्वीप दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में से एक माना जाता है। लगभग 1,200 किलोमीटर लंबे इस क्षेत्र को प्रशांत महासागर के रिंग ऑफ फायर में शामिल किया जाता है, जहां टेक्टॉनिक प्लेटों की लगातार हलचल और बार-बार ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं। इसी वजह से इसे रूस का “आपदा क्षेत्र” भी कहा जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कामचटका के नीचे प्रशांत प्लेट, उत्तरी अमेरिकी प्लेट और ओखोत्स्क माइक्रोप्लेट आपस में टकराती हैं, जिससे यहां अक्सर भीषण भूकंप आते रहते हैं। यहां रहने वाले लोग हर बार नए खतरे और अनिश्चितता के माहौल में जीते हैं। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां लगातार इस क्षेत्र की परिस्थितियों पर नज़र बनाए रखती हैं।