व्लादिमीर पुतिन, शी जिनपिंग (फोटो- सोशल मीडिया)
Russia China Gas Pipeline Deal: अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर 50% का भारी टैरिफ लगा दिया है। हैरानी की बात यह है कि चीन, जो भारत से कहीं ज्यादा मात्रा में रूस से तेल खरीदता है, उस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इसी बीच चीन और रूस के बीच एक और बड़ी डील हुई है। दोनों देश मिलकर एक नई गैस पाइपलाइन का निर्माण करेंगे।
इस ऐतिहासिक समझौते के तहत ‘पावर ऑफ साइबेरिया-2’ नाम की गैस पाइपलाइन बनाई जाएगी। इस पर सहमति के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस और चीन के रिश्ते अब तक के “अभूतपूर्व रूप से उच्च स्तर” पर पहुंच चुके हैं। यह जानकारी सीएनएन की एक रिपोर्ट में दी गई है।
रूस और चीन के बीच यह समझौता ऐसे वक्त में किया है जब अमेरिका की विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर रुख में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी टैरिफों के चलते वैश्विक व्यवस्था में अस्थिरता फैल गई है।
यह महत्वाकांक्षी परियोजना हर साल मंगोलिया के रास्ते पश्चिमी रूस से उत्तरी चीन तक 50 अरब क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस पहुंचाएगी। इससे रूस को यूरोप में गैस निर्यात में आई भारी गिरावट की भरपाई करने में मदद मिलेगी यह गिरावट यूक्रेन युद्ध की वजह से आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, पुतिन के हालिया चीन दौरे के दौरान दोनों देशों के नेताओं ने कई घंटे साथ बिताए। उन्होंने मंगोलिया के राष्ट्रपति उखना सुरेलसुख से भी मुलाकात कर औपचारिक मुलाकात कीं। इसके अलावा, चीनी राष्ट्रपति के सरकारी आवास पर दोनों नेता चाय पर भी साथ देखे गए।
मंगलवार दोपहर रूस की सरकारी ऊर्जा कंपनी गजप्रोम ने घोषणा की कि ‘पावर ऑफ साइबेरिया-2’ गैस पाइपलाइन के निर्माण के लिए एक बाध्यकारी समझौता किया गया है। रूस इस परियोजना को कई वर्षों से शुरू करने की कोशिश कर रहा था। गजप्रोम ने बताया कि रूस और चीन के बीच बिछाई जाने वाली गैस पाइपलाइन परियोजना दुनिया की सबसे बड़ा प्रोजेक्ट होगा।
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इस समझौते को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए एक बड़ी रणनीतिक जीत मानी जा रही है। यूरोपीय बाजार में गिरावट के बाद अब उन्होंने चीन को अपना प्रमुख गैस उपभोक्ता मान लिया है। इसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की उस रणनीति के खिलाफ एक सामूहिक प्रतिक्रिया भी माना जा रहा है, जिसमें वे अन्य देशों पर रूस से ऊर्जा आयात बंद करने का दबाव बना रहे हैं ताकि यूक्रेन युद्ध पर लगाम लगाई जा सके।