साजिथ प्रेमदासा (सोर्स-सोशल मीडिया)
कोलंबो, विशेष प्रतिनिधि: श्रीलंका में 21 सितंबर को नए राष्ट्रपति का चुनाव होने जा रहा है। इस इलेक्शन में मुकाबला चतुष्कोणीय है। अब तक के सभी राष्ट्रपति चुनावों में यह काफी पेचीदा चुनाव नजर आ रहा है। एक ओर निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रम सिंघे स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं तो दूसरी ओर तीन अन्य उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं।
इन प्रत्याशियों में विक्रम सिंघे भविष्य में आर्थिक स्थिरता और समृद्धि का वादा कर रहे हैं तो उनके सम्मुख ताल ठोक रहे विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा, जो समागिजना बालवेगया ( एसजेबी) के उम्मीदवार हैं, काफी लोकप्रिय हैं। जबकि मार्क्सवादी जनता विमुक्ति प्रेमुरा ( जेवीपी) के उम्मीदवार अनुरा कुमारा दिसानायका स्वीडन जैसा कल्याणकारी राज्य बनाने की बात कर रहे हैं। वहीं सबसे युवा नमल राजपक्षे श्री लंका पोदुजना पेरामुरा (एसएलपीपी) के उम्मीदवार हैं। यानी इन सभी का मुख्य मुकाबला साजिथ प्रेमदासा से है।
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एक विशेष इंटरव्यू में साजिथ प्रेमदासा ने कहा कि श्रीलंका में 2 वर्ष पहले के आर्थिक पतन के बाद यह पहला चुनाव है। अत: इसका अपना अलग ही महत्व है। अस्थिरता के दौर से गुजर रहे इस क्षेत्र में नए राष्ट्रपति को लेकर जहां आशाएं हैं वहीं बहुत सी उम्मीदें भी हैं। खास तौर पर आर्थिक संकट से उबारने में जिसका नेतत्व सक्षम हो, जनता ऐसे ही उम्मीदवार की तलाश में है। दक्षिण एशिया में, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मालदीव और यहां तक कि नेपाल में भी कुछ हद तक अस्थिरता और उथल-पुथल रही है। किसी भी देश के लंबे समय तक ऐसे हालात ठीक नहीं हैं क्योंकि इससे आम जनता पर सबसे अधिक असर पड़ता है।
ऐसा दिखाई दे रहा है कि विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा के पक्ष में राजनीतिक बयार बह रही है। आशा जताई जा रही है कि उनकी जीत से बड़ा बदलाव आएगा और देश में सुदृढ़ और स्थिर सरकार की स्थापना होगी. ऐसा इसलिए क्यों कि मजबूत नेता स्थिरता के साथ स्थिर सरकार बनाता है। साजिथ में वह दमखम है कि वे देश में सभी जातीय समुदायों के बीच सच्चे अर्थों में मेल-मिलाप शुरू कर सकते हैं, ऐसे और भी कारण हैं, जिससे साजिथ के तहत स्थिरता केवल चर्चा का विषय नहीं बल्कि वास्तविकता होगी। सभी ओर से अच्छा समर्थन मिलने से साजिथ अन्यों की तुलना में अधिक स्थिरता ला सकते हैं।
प्रेमदासा के मैनिफेस्टो का नाम है- ‘ए विन फॉर ऑल’ जिसमें आर्थिक नीति को “सामाजिक लोकतांत्रिक” बता कर पेश किया जा रहा है। उनका घोषणापत्र निम्न-आय और मध्यम वर्ग की आवास से जुड़ी चुनौतियों के समाधान का रास्ता दिखाती है। इसके लिए वो हाउसिंग स्कीम लेकर आए हैं जिसमें सरकारी स्वामित्व वाली भूमि इन समूहों के घर बनाने के लिए इस्तेमाल की जाएंगी। उन्होंने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि वह आईएमएफ कार्यक्रम को जारी रखेंगे। लेकिन उन शर्तों पर जो समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए अधिक अनुकूल हैं। यही नहीं देश में 11 % अल्पसंख्यक तमिल समुदाय को भी साधने की पूरी कोशिश की है। उन्होंने इस वर्ग को भरोसा दिया है कि वो उन्हें सत्ता में हिस्सेदार बनाएंगे।
भारत चाहता है कि उसके पड़ोसी मुल्कों में स्थिर सरकारें रहें। पिछले कुछ समय से हाल के दिनों में भारत की चिंताओं, खासकर सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़े कुछ विषयों में श्रीलंका सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया जब श्रीलंका संकट से जूझ रहा था, तब भारत ने मुद्रा स्विपिंग, लाइन ऑफ क्रेडिट, ईंधन आपूर्ति के जरिए जो हमें मदद प्रदान की, उसे यहां के नेता और जनता भूले नहीं हैं।
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कई नेता विदेशी इशारों पर भारत का अपमान कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे रहे, उन्हें जनता आने वाले समय में दरकिनार करने से बाज नहीं आएगी। ऐसे हालात में साजिथ प्रेमदासा की गैर-प्रतिबद्धता की नीति ही भारत और श्री लंका साथ-साथ अन्य सभी देशों के हित में अनुकूल रूप से काम करेगी।