पाकिस्तान में धर्म की राजनीति पर जोर (सोर्स- सोशल मीडिया)
Army Rule in Pakistan: पाकिस्तान में हमेशा से धर्म का इस्तेमाल राजनीति में होता आया है। लेकिन 2025 में पड़ोसी मुल्क में कुछ ऐसी घटनाएं हुई जो बताती है कि पाकिस्तान उसी पुराने चक्र में फंसती दिखाई देने लगी, जहां लोकतंत्र सिर्फ दिखावा और असली ताकत सेना के हाथ में होती है। इस साल सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की ताकत तेजी से बढ़ी और कई फैसलों ने लोगों को जनरल जिया के दौर की याद दिला दी।
आसिम मुनीर और सेना 2025 में धर्म के नाम पर जमकर राजनीति की। उन्होंने पहलगाम हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बार-बार इस्लामी पहचान, धर्म की सुरक्षा और देश को इस्लामिक एजाद रखना जैसे मुद्दों को लेकर भड़काऊ बयान दिए। जबकि देश में महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक संकट बढ़ रहा था, तब सरकार और सेना ने जनता का ध्यान हटाने के लिए धार्मिक नारों का इस्तेमाल किया। टीवी चैनलों पर भी माहौल ऐसा बनाया गया कि इस्लाम खतरे में है, और इस खतरे से बचाने वाला सिर्फ सेना ही है।
आसिम मुनीर और सेना ने 2025 में भारत के खिलाफ भी पुराना नैरेटिव दोबारा तेज किया। कभी कहा कि भारत इस्लामी पाकिस्तान को कमजोर करना चाहता है, कभी सीमा पर छोटे तनाव को धार्मिक कर्तव्य की तरह पेश किया गया। कई जगह यह बयान फैलाया गया कि भारत से खतरे के कारण सेना को और ताकत देना जरूरी है। इसके अलावा मुनीर ने भारत के खिलाफ हजार जख्म की नीति का भी नारा दिया।
पाकिस्तान में यह नारा नया नहीं है। 1971 की जंग में भारत से मिली करारी हार के बाद, सेना की कमियों और बांग्लादेश में हुए अत्याचारों को छिपाने के लिए तब के सेना प्रमुख और बाद में राष्ट्रपति बने जनरल जिया उल हक ने भारत को हार का जिम्मेदार ठहराते हुए “भारत एक हजार जख्म” की नीति अपनाई थी। मुनीर भी ऑपरेशन सिंदूर में मिली हार को छुपाने के लिए जिया के नक्शेकदम पर चलते नजर आ रहे हैं। इस तरह, पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और राजनीतिक उथल-पुथल पर ध्यान कम पड़ता है, क्योंकि जनता का ध्यान भारत-विरोध की ओर मोड़ दिया जाता है।
मुनीर के साथ 2025 में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की भूमिका भी कम दिलचस्प नहीं रही। कई रिपोर्टों में दावा किया गया कि उन्होंने सत्ता बचाने के लिए सेना से समझौता कर लिया। दिखने में सरकार उनकी है, पर बड़े फैसले मुनीर और सेना की मंजूरी से ही होते हैं। इमरान खान पर हुई कार्रवाइयों को भी सेना और सरकार ने मिलकर धर्म और सुरक्षा का मुद्दा बनाकर जनता के सामने पेश किया, ताकि विरोध की आवाज़ कमजोर हो जाए।
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पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हो रही हैं और सेना फिर से खुलकर राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। जनरल मुनीर की बढ़ती ताकत और इस्लाम के नाम पर चलाए गए नैरेटिव से यह साफ दिखता है कि पाकिस्तान की राजनीति अब भी पुरानी मानसिकता से बाहर नहीं निकली है। हाल ही में उन्हें पाकिस्तान का नया चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) नियुक्त किया गया है। इसका मतलब है कि अब मुनीर के एक हाथ में सत्ता की चाबी और दूसरे हाथ में न्यूक्लियर बम का नियंत्रण है। पाकिस्तान के इतिहास में इतनी ताकत सिर्फ जनरल जिया उल हक के पास थी।