टैरिफ के वार बीच रूस-चीन और भारत ( डिजाइन फोटो )
India US trade tensions: अमेरिका के व्यापारिक प्रतिबंधों और आलोचनाओं के बीच, भारत, चीन और रूस ने अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के खिलाफ झुकाव दिखाना शुरू कर दिया है। जानकारों का कहना है कि इन तीनों देशों का यह त्रिकोणीय सहयोग एक नए भू-राजनीतिक ध्रुव के उभरने का संकेत देता है।
2020 के सीमा विवाद के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार चीन की यात्रा पर जाएंगे। इससे पहले, जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन पहुंचे थे, जहां उन्होंने अपने चीनी समकक्ष एडमिरल डोंग जून से मुलाकात की। यह किसी भारतीय रक्षा मंत्री की 11 वर्षों में पहली चीन यात्रा थी। वहीं, 18 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत आएंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भेंट करेंगे। इस बैठक में सीमा विवाद, कैलाश मानसरोवर यात्रा समेत कई रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा होगी।
जुलाई 2024 में हुए 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की थी। अब वे एक बार फिर भारत आने वाले हैं। अमेरिका की नाखुशी के बावजूद भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखी है और इसे अपने राष्ट्रीय हित में आवश्यक बताया है।
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भारत और रूस के बीच वित्तीय वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 65.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले साल की तुलना में 33% अधिक है। दोनों देशों के रिश्ते रक्षा क्षेत्र में भी काफी मजबूत हैं। S-400 वायु रक्षा प्रणाली, T-90 टैंक, Su-30MKI लड़ाकू विमान, ब्रह्मोस मिसाइल और AK-203 राइफल के निर्माण जैसे कई प्रोजेक्ट्स पर दोनों देश संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं।
1990 के दशक में गठित रूस-भारत-चीन (RIC) समूह बीते कुछ वर्षों से लगभग निष्क्रिय रहा था। लेकिन हाल के हालात में, जब तीनों देशों के अमेरिका से रिश्ते सहज नहीं हैं, इसे फिर से सक्रिय करने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। चीनी थिंक टैंक फुडान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शी चाओ के अनुसार, तीनों राष्ट्र बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के समर्थक हैं और अब उनके लिए सहयोग बढ़ाकर अमेरिका की एकतरफा नीतियों का संतुलित जवाब देना जरूरी है।
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वल्दई डिस्कशन क्लब के विशेषज्ञ टिमोफेई बोर्डाचेव का कहना है कि RIC किसी भी देश की विदेश नीति की स्वतंत्रता को सीमित नहीं करता, बल्कि वैश्विक स्थिरता में योगदान दे सकता है। एक रिपोर्टस के मुताबिक, RIC का दोबारा सक्रिय होना ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए फायदेमंद हो सकता है। यह समूह, G7 और BRICS का एक व्यावहारिक विकल्प बनकर, टकराव के बजाय संवाद को प्राथमिक महत्व दे सकता है।