पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
नवभारत इंटरनेशनल डेस्क: श्रीलंका के उप श्रम मंत्री महिंदा जयसिंघे की एक मंदिर यात्रा राजनीतिक विवाद का कारण बन गई है। विवाद तब बढ़ा जब उन्होंने संसद में अपने बौद्ध प्रशिक्षण केंद्र के दौरे का उल्लेख किया। विपक्षी सांसदों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई, जिससे संसद में तीखी बहस छिड़ गई। जयसिंघे का कहना है कि इस केंद्र की जमीन पर अवैध कब्जा किया गया है और इसकी जांच किया जाना आवश्यक है।
संसद में मंत्री जयसिंघे ने केलानिया के बौद्ध प्रशिक्षण केंद्र की जमीन से जुड़े विवाद को गंभीर मसला बताया। इससे पहले, सांसद दयासिरी जयसेकरा ने कुछ आरोप लगाए थे, जिनका जवाब देने के लिए जयसिंघे को बोलने की अनुमति मिली। हालांकि, जयसेकरा ने आपत्ति जताई कि उन्होंने जयसिंघे का नाम नहीं लिया था। इसके चलते सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच तीखी बहस छिड़ गई, लेकिन कुछ देर बाद माहौल शांत हो गया।
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मंत्री जयसिंघे ने आरोप लगाया कि जब वे अपनी टीम के साथ नागानंद अंतरराष्ट्रीय बौद्ध ध्यान केंद्र पहुंचे, तो उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें गेट पर ही रोक लिया और पुलिस को बुला लिया। इस दौरान मंत्री ने केंद्र के मुख्य पुजारी से बातचीत की और स्पष्ट किया कि वे गांववासियों की अपील पर वहां आए हैं।
मंत्री जयसिंघे ने एक और अहम दावा करते हुए कहा कि पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे कई बार इस केंद्र का गुप्त रूप से दौरा कर चुके हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस मामले को लेकर जनता के बीच कई तरह की शंकाएँ हैं। ऐसे में सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि राजपक्षे इस स्थान पर बार-बार क्यों जाते थे।
जयसिंघे ने जानकारी दी कि स्थानीय निवासियों ने ध्यान केंद्र की जमीन पर जबरन कब्जे का आरोप लगाया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वह जिला प्रशासन के माध्यम से मामले की पूरी जांच करवाएंगे और यदि कोई अनियमितता सामने आती है तो उचित कदम उठाए जाएंगे।
इस विवाद के चलते श्रीलंका की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। सरकार इस भूमि विवाद की जांच कराने की बात कह रही है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक प्रतिशोध का मामला बता रहा है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे के और अधिक गरमाने की संभावना है।