मदरसे में पढ़ते बच्चे। इमेज-एआई
Pakistan News: पाकिस्तान में मदरसे धार्मिक और सामाजिक जीवन का अहम हिस्सा हैं। मगर, उन पर कट्टरपंथ और चरमपंथ को बढ़ावा देने का इल्जाम लग रहा है। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, मौलवियों के विरोध और सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते मदरसों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में शामिल नहीं किया जा सका है। नतीजा मदरसों से पढ़े रहे बच्चे और किशोर चरमपंथी विचारधाराओं के प्रभाव में आसानी से आ जाते हैं।
पाकिस्तान ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के मुताबिक, आजादी के बाद से लगातार सरकारों ने मदरसा शिक्षा में सुधार करके उसे मुख्यधारा प्रणाली में लाने और कट्टरपंथ में इसकी भूमिका को सीमित करने की कोशिश की है। हर कोशिश को मौलवियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिससे सफलता नहीं मिली।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़ाकों को प्रेरित करने और धार्मिक शिक्षा को एक राजनीतिक हथियार में बदलने के लिए मदरसे के सिलेबस में जानबूझकर चरमपंथी विचारों को शामिल किया गया था। छात्रों को सिखाया जाता था कि धर्मत्याग और बहुदेववाद दुनिया भर में मौत की सजा के लायक हैं, ताकि उन्हें ऐसी सजाओं को लागू करने का धार्मिक अधिकार मिलता था। उन्होंने सीखा कि केवल मुसलमानों को ही शासन करने का अधिकार है, जिससे गैर-मुस्लिम सरकारें अवैध हो जाती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मदरसों ने इस विश्वास को बढ़ावा दिया कि हर जगह मुसलमानों को एक ही इस्लामिक खिलाफत के तहत एकजुट होना चाहिए, ताकि स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र-राज्य अस्वीकार्य हो जाते हैं। आधुनिक संप्रभु राष्ट्र-राज्य को बहुदेववाद के एक रूप के रूप में दिखाया गया, जो इस्लाम के साथ मेल नहीं खाता। इन विचारों ने कठोर वैचारिक ढांचा बनाया, जिसने उग्रवाद और बहुलवादी राजनीतिक प्रणालियों के प्रति नाराजगी को बढ़ाया।
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रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि मदरसा सुधार में मुख्य चुनौती वित्तीय निगरानी है। मदरसों की देखरेख प्रशासक (मुंतजिम) करते हैं, जो लगभग पूरी आजादी के साथ काम करते हैं। कोई बाहरी ऑडिट नहीं होता है। सभी खर्च मदरसे के प्रमुखों द्वारा अप्रूव किए जाते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि असफल सुधार प्रयासों का लगातार जारी रहना गहरे सामाजिक, राजनीतिक और संस्थागत कारकों में निहित है। मौलवियों का विरोध इस मुद्दे के मूल में है। सरकार का रवैया भी एक जैसा नहीं रहा है। आतंकवादी हमलों या इंटरनेशनल दबाव जैसे संकटों के दौरान सुधार के प्रयास तेज होते हैं, लेकिन जैसे ही फौरी जरूरत खत्म होती है, उन्हें छोड़ दिया जाता है।