अनुरा दिसानायके (सोर्स- सोशल मीडिया)
कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में वामपंथी पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट पार्टी के 55 वर्षीय नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को विजेता घोषित किया गया है। वह सोमवार को श्रीलंका के नए राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे। दिसानायके ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि यह जीत हम सभी की है।
पिछले सालों में आर्थिक चुनौतियों और फिर राजनीतिक अराजकता का सामना करने के बाद श्रीलंका में यह पहला चुनाव था। करीब डेढ़ साल पहले श्रीलंका सरकार के खिलाफ आंदोलन में दिसानायके ने अहम भूमिका निभाई थी, इस राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें जनता के उसी समर्थन का फल मिला, क्योंकि पिछले चुनाव में दिसानायके की पार्टी को महज तीन फीसदी वोट मिले थे। उन्हें चीन का समर्थक माना जाता है।
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The dream we have nurtured for centuries is finally coming true. This achievement is not the result of any single person’s work, but the collective effort of hundreds of thousands of you. Your commitment has brought us this far, and for that, I am deeply grateful. This victory… pic.twitter.com/N7fBN1YbQA
— Anura Kumara Dissanayake (@anuradisanayake) September 22, 2024
पहले दौर की मतगणना के अनुसार, कुमारा दिसानायके पहले दौर की मतगणना में 56 लाख 30 हजार यानी 42.31 प्रतिशत वोट हासिल करके शीर्ष स्थान पर रहे। दूसरे स्थान पर विपक्षी समागी जन बालवेगया के नेता साजिथ प्रेमदासा रहे, जिन्हें 43 लाख 60 हजार यानी 32.8 प्रतिशत वोट मिले हैं। मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को केवल 22 लाख 90 हजार यानी 17.27 प्रतिशत वोट मिले।
श्रीलंका में कभी भी कोई चुनाव मतगणना के दूसरे दौर तक नहीं पहुंचा है, क्योंकि प्रथम वरीयता मतों के आधार पर हमेशा कोई उम्मीदवार विजेता बनता रहा है। एकेडी के नाम से मशहूर 56 वर्षीय दिसानायके का शीर्ष पद पर पहुंचना 50 साल पुरानी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के लिए एक उल्लेखनीय बदलाव है, जो लंबे समय से हाशिये पर थी। वह श्रीलंका में मार्क्सवादी पार्टी के पहले नेता हैं जो राष्ट्र के प्रमुख बने हैं।
साल 2022 से एनपीपी की लोकप्रियता में तेजी से उछाल आया। 2019 के पिछले राष्ट्रपति चुनाव में उसे सिर्फ करीब तीन प्रतिशत वोट मिले थे। दिसानायके उत्तर मध्य प्रांत के ग्रामीण थम्बुटेगामा से हैं। उन्होंने कोलंबो उपनगरीय केलानिया विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक किया है। वह 1987 में ऐसे वक्त में एनपीपी की मातृ पार्टी जेवीपी में शामिल हुए थे जब उसका भारत विरोधी विद्रोह चरम पर था।
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जेवीपी ने 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते का समर्थन करने वाले सभी लोकतांत्रिक दलों के कई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी। राजीव गांधी-जे आर जयवर्धने समझौता देश में राजनीतिक स्वायत्तता की तमिल मांग को हल करने के लिए प्रत्यक्ष भारतीय हस्तक्षेप था। जेवीपी ने भारतीय हस्तक्षेप को श्रीलंका की संप्रभुता के साथ धोखा करार दिया था। हालांकि, इस वर्ष फरवरी में दिसानायके की भारत यात्रा को एनपीपी नेतृत्व के भारत के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जो विदेशी निवेश हितों के साथ तालमेल व्यक्त करने का संकेत देता है।ॉ
-एजेंसी इनपुट के साथ